NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7 छाया मत छूना
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प्रश्न-अभ्यास
(पाठ्यपुस्तक से)
प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?
उत्तर
प्रायः मनुष्य वर्तमान की यथार्थ परिस्थितियों में रहकर अतीत को सुखद-स्मृतियों में डूबा कल्पना लोक में विचरण करता है। अतीत की स्मृतियों में डूबे रहने से वर्तमान परिस्थितियाँ अधिक भयावह होती जाती हैं। अतः वर्तमान की स्थिति से संघर्ष करते हुए उसे अपने अनुकूल बनाने, उससे सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करना चाहिए। यथार्थ से पलायन न कर उसके पूजन की बात कवि ने कही है।
प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता की शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर
कवि ने इस यथार्थ को स्पष्ट किया है कि मनुष्य प्रभुता की आकांक्षा लिए उसके पीछे भागता रहता है। यश, वैभव, मान-सम्मान की आकांक्षा निरंतर मनुष्य को संतप्त किए रहती है। मनुष्य यह जानते हुए भी कि इनकी आकांक्षा तृप्त नहीं होने वाली है, वह कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं होगी, फिर भी मृगतृष्णा को मन में लिए उसके पीछे भागता रहता है, भटकता रहता है।
मनुष्य को इस यथार्थ को स्वीकर कर लेना चाहिए कि जिस प्रकार चाँदनी रात के बाद काली-रात का अस्तित्व होता है, उसी प्रकार सुख का समय बीत जाने पर दुखों का सामना करना पड़ेगा।
प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने इसे छूने के लिए मना क्यों किया है?
उत्तर
कवि ने ‘छाया’ शब्द का प्रयोग जीवन के उन सुखद क्षणों के लिए किया है, जो अतीत बन चुके हैं। जीवन में सुखद क्षणों की स्मृतियाँ मनुष्य को दिग्भ्रमित करती हैं।
कवि ने प्रेरित किया है कि जितना अतीत के सुखद क्षणों को याद करेंगे, उतनी ही वर्तमान की विषमताएँ अधिक प्रभावी होती जाएँगी, जीवन बोझिल होता जाएगा। इसलिए कवि ने ऐसी छाया को छूने के लिए मना किया है।
प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ । कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि
इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर
विशेषणों के प्रयोग से शब्द के यथार्थ अर्थ में विशिष्टता आ जाती है, गंभीरता आ जाती है। ऐसे शब्द कविता में कई स्थानों पर प्रयुक्त हुए हैं; जैसे-
- दुख-दूना = यहाँ ‘दूना’ विशेषण शब्द दुख की प्रबलता बताने के संदर्भ में प्रयोग हुआ है।
- सुरंग-सुधियाँ = यहाँ ‘सुरंग’ विशेषण शब्द मधुर-स्मृतियों को और अधिक मधुर | बनाने के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है।
- जीवित क्षण = ‘जीवित’ विशेषण शब्द जीवन के प्रत्येक क्षण में जीवंतता प्रदान करता है।
- रात-कृष्णा = ‘कृष्णा’ विशेषण शब्द रात के अंधकार में गहनता प्रदान करता है।
- दुविधा-हत साहस = ‘दुविधा-हत’ विशेषण मलिन हुए साहस को अधिक हतप्रभ कर देता है।
प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?
उत्तर
रेगिस्तान में तप्त-गर्मी में दूर रेत पर जल के होने का आभास होता है और गर्मी में प्यास से व्याकुल मृग जल के आभास मात्र को यथार्थ समझ, उसके पीछे भागता है। जैसे-जैसे भागता हुआ मृग उसकी ओर जाता है वह आभास भी दूर होता जाता है। इस सत्य को बिना समझे मृग भटकता ही रहता है। यही मृगतृष्णा है।
कविता में मृगतृष्णा शब्द मृग के लिए न होकर मानव के लिए प्रयुक्त हुआ है। मानव भी अयथार्थ को यथार्थ मानकर मृग की तरह यश, वैभव, सम्मान जैसी मृगतृष्णा के लिए जीवन-भर भटकता रहता है। इस भटकाव में मनुष्य को किंचित समय के लिए विश्रांति नहीं मिलती है।
प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर
इस संदर्भ में कवि की यह पंक्ति साम्य-भाव प्रकट करती है-
“जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण”
अतः जो बीत चुका है उसकी याद किए बिना आगे आने वाले समय को सँवारने का प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कविता में दुख के अनेक कारणों की चर्चा की गई है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं
- बीते हुए सुखमय दिनों को याद करने से वर्तमान का दुख बढ़ जाता है।
- धन-दौलत, मान-सम्मान, यश तथा प्रतिष्ठा के पीछे मनुष्य जितना भागता है, उतना ही दुखी होता है।
- प्रभुत्व प्राप्ति की आकांक्षा मृगतृष्णा के समान है जिसे व्यक्ति हासिल करना चाहता है।
- मनुष्य को समय पर उपलब्धियाँ न मिलने से दुख मिलता है।
- मनुष्य वर्तमान का यथार्थ नहीं स्वीकार कर पाता है और दुखी होता है।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ सँजोए रखी हैं? ।
उत्तर
जीवन में घटित कुछ घटनाएँ ऐसी होती हैं जो बरबस स्मृति-पुटल में कौंधती रहती हैं। दिवस तो बीत जाते हैं, किंतु घटनाएँ अपने अस्तित्व को बनाए रखती हैं। फूल के मुझ जाने पर उसकी सुगंधि पर्यावरण में महकती रहती है। ऐसी घटनाएँ भी होती हैं जो पीछा नहीं छोड़ती हैं और कुछ ऐसी सुखद घटनाएँ होती हैं जिनका चित्रण बार-बार करते हैं और उनके चित्रण में आनंदानुभूति होती है।
प्राथमिक विद्यालय स्तर पर खेले जाने वाले खेल, स्वच्छंद घूमना, घर लौटने पर पिता जी की अप्रत्याशित फटकार । वर्षा ऋतु में छोटी-सी नदी में नहाते समय डूबने से बचना आदि यादें सिहरन पैदा कर देती हैं।
प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’-कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर
यद्यपि समयानुसार प्राप्त उपलब्धि का महत्त्व विशेष ही होता है, किंतु उपलब्धि समय पर न मिलकर देर से मिलती है तो सांत्वना अवश्य प्रदान करती है। उपलब्धियों का मानव मन पर समयानुसार अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। कभी ऐसा भी होता है कि देर से मिली उपलब्धि उपहास का कारण बन जाती है क्योंकि उसका किंचित भी औचित्य नहीं होता है। वह साँप निकल जाने पर लकीर पीटने जैसे होती है। “का वर्षा जब कृषि सुखाने” जैसा रोना होता है। विवाह-उत्सव के पूर्ण हो जाने पर बाजेवालों का आना उपहास का कारण बनता है। वहीं निर्दोष व्यक्ति को दोषी ठहराए जाने पर जीवन के अंत में न्यायालय द्वारा दोष-मुक्त किया जाना उसे सांत्वना प्रदान करता है। स्वतंत्रता-सेनानियों ने जीवन के अंत में स्वतंत्र-भारत में अंतिम-साँसें लीं, तब उन्हें प्रसन्नता की पूर्ण अनुभूति हुई ।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न (क)
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने पर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर
(क) छात्र स्वयं अपने जीवन में घटित घटनाओं के आधार पर लिखें।
प्रश्न (ख)
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर
(ख) छात्र गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ नामक कविता पुस्तकालय से लेकर पढ़ें तथा इसके संबंध में विशेष जानकारी हासिल करने के लिए अध्यापक से
संपर्क करें, फिर उनकी देख-रेख में इस पर चर्चा करें।
यह भी जानें
प्रसिद्ध गीत “We shall Overcome” का हिंदी अनुवाद ‘हम होंगे कामयाब शीर्षक से कवि गिरिजाकुमार माथुर ने किया है।
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