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NCERT Solutions for Class 12 Microeconomics Chapter 2 Theory of Consumer Behavior (Hindi Medium)
प्र० 1. उपभोक्ता के बजट सेट से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: बजट सेट दो वस्तुओं के उन सभी बंडलों का संग्रह है जिन्हें उपभोक्ता प्रचलित बाजार कीमत पर अपनी आय से खरीद सकता है।
प्र० 2. बजट रेखा क्या है?
उत्तर: बजट रेखा उन सभी बंडलों का प्रतिनिधित्व करती है, जिन पर उपभोक्ता की संपूर्ण आय व्यय हो जाती है।
प्र० 3. बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर क्यों होती है? समझाइए।
उत्तर: बजट रेखा की प्रवणता नीचे की ओर होती है, क्योंकि बजट रेखा पर स्थित प्रत्येक बिन्दु एक ऐसे बंडल को दर्शाता है जिस पर उपभोक्ता की पूरी आय व्यय हो जाती हैं ऐसे में यदि उपभोक्ता वस्तु 1 की 1 इकाई अधिक लेना चाहता है, तब वह ऐसा तभी कर सकता है जब वह दूसरी वस्तु की कुछ मात्रा छोड़ दे। वस्तु 1 की मात्रा कम किये बिना वह वस्तु 2 की मात्रा बढ़ा नहीं सकता। वस्तु 1 की एक अतिरिक्त इकाई पाने के लिए उसे वस्तु 2 की कितनी इकाई छोड़नी होगी यह दो वस्तुओं की कीमत पर निर्भर करेगा।
प्र० 4. एक उपभोक्ता दो वस्तुओं का उपभोग करने के लिए इच्छुक है। दोनों वस्तुओं की कीमत क्रमशः 4 ₹ है तथा 5 ₹ है। उपभोक्ता की आय 20 ₹ है-
(i) बजट रेखा के समीकरण को लिखिए।
(ii) उपभोक्ता यदि अपनी संपूर्ण आय वस्तु 1 पर व्यय कर दे तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iii) यदि वह अपनी संपूर्ण आय वस्तु 2 पर व्यय कर दे तो वह उसकी कितनी मात्रा का उपभोग कर सकता है?
(iv) बजट रेखा की प्रवणता क्या है?
उत्तर:
प्र० 5, 6 तथा 7 प्रश्न 4 से संबंधित हैं।
प्र० 5. यदि उपभोक्ता की आय बढ़कर 40 १ हो जाती है, परन्तु कीमत अपरिवर्तित रहती है तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन होता है?
उत्तर: बजट रेखा 4Q + 5Qy ≤ 40
प्र० 6. यदि वस्तु 2 की कीमत में 1 १ की गिरावट आ जाए परन्तु वस्तु 1 की कीमत में तथा उपभोक्ता की आय में कोई परिवर्तन न हो तो बजट रेखा में क्या परिवर्तन आएगा?
उत्तर: बजट रेखा 4Qn + 4Qy ≤ 20
प्र० 7. यदि कीमतें और उपभोक्ता की आय दोनों दुगुनी हो जाए तो बजट सेट कैसा होगा?
उत्तर: 8Qx + 10Qy ≤ 40
2 समान लेने पर 4Qx + 5Qy ≤ 20
अतः बजट सेट समान रहेगा।
प्र० 8. मान लीजिए कि कोई उपभोक्ता अपनी पूरी आय का व्यय करके वस्तु 1 की 6 इकाइयाँ तथा वस्तु 2 की 8 इकाइयाँ खरीद सकता है। दोनों वस्तुओं की कीमतें क्रमशः 6 १ तथा 8 में हैं। उपभोक्ता की आय कितनी है?
उत्तर:
प्र० 9. मान लीजिए, उपभोक्ता दो ऐसी वस्तुओं का उपभोग करना चाहता है, जो केवल पूर्णाक इकाइयों में उपलब्ध हैं। दोनों वस्तुओं की कीमत 10 ₹ के बराबर है तथा उपभोक्ता की आय 40 ₹ है। |
(i) वे सभी बंडल लिखिए जो उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं।
(ii) जो बंडल उपभोक्ता के लिए उपलब्ध हैं, उनमें से वे बंडल कौन से हैं जिन पर उपभोक्ता के पूरे 40 ₹ व्यय हो जाएँगे।
उत्तर: (i) बजट रेखा समीकरण 10a + 100y < 40 अतः सभी बंडल जो वह खरीद सकता है।
(0, 0), (0, 1), (0, 2), (0, 3), (0, 4)
(1, 0), (1, 1), (1, 2) (1, 3)
(2, 0), (2, 1), (2, 2)
(3, 0), (3, 1)
(4,0)
(ii) ऐसे बंडल जिन पर पूरे 40 ₹ व्यय हो जायेंगे- (0, 4), (1, 3), (2, 2), (3, 1), (4, 0)
प्र० 10. ‘एकदिष्ट अधिमान’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: एकदिष्ट अधिमान का अर्थ है कि उपभोक्ता एक वस्तु की कम मात्रा की तुलना में अधिक मात्रा को सदा अधिक पसंद करता है। इसका अर्थ है कि अनाधिमान वक्र की प्रवणती नीचे की ओर है। यदि उपभोक्ता के एकदिष्ट अधिमान है तो वह संयोजन (4, 5) से अधिक संयोजन (5, 5) या (4, 6) को करेगा।
प्र० 11. यदि एक उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं तो क्या वह बंडल (10, 8) और बंडल (8, 6) के बीच तटस्थ हो सकता है?
उत्तर: नहीं यदि एक उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं तो वह बंडल (10, 8) को (8, 6) से अधिक प्राथमिकता देगा।
प्र०12. मान लीजिए कि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट हैं। बंडल (10, 10), (10, 9) तथा (9, 9) पर उसके अधिमान श्रेणीकरण के विषय में आप क्या बता सकते हैं?
उत्तर: वह (10, 10) को (10, 9) से अधिक तथा (10, 9) को (9, 9) से अधिक प्राथमिकता देगा यानि U(10, 10) > U(10, 9) > U(9, 9)
प्र० 13. मान लीजिए कि आपका मित्र, बंडल (5, 6) तथा (6, 6) के बीच तटस्थ है। क्या आपके मित्र के अधिमान एकदिष्ट हैं?
उत्तर: नहीं, यदि उसके अधिमान एकदिष्ट होते तो वह (6, 6) को (5, 6) से अधिक प्राथमिकता देता।
प्र० 14. मान लीजिए कि बाजार में एक ही वस्तु के लिए दो उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन इस प्रकार हैं-
d1(p) = 20 – p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 20 से कम या बराबर हो तथा d1(p) = 0 किसी ऐसी कीमत के लिए जो 20 से अधिक हो।
d2(p) = 30 – 2p किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक या बराबर हो और d1(p) = 0 किसी ऐसी कीमत के लिए जो 15 से अधिक हो। बाजार माँग फलन को ज्ञात कीजिए।
उत्तर: बाजार माँग फलन = d1(P) + d2(P) :
dM(P) = 20 – P + 30 – 2P = 50 – 3P
किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो से कम या बराबर हो।
dM(P) = 0 किसी ऐसी कीमत के लिए जो से अधिक हो।।
प्र० 15. मान लीजिए, वस्तु के लिए 20 उपभोक्ता हैं तथा उनके माँग फलन एक जैसे हैं
d1(p) = 10 – 3p किसी ऐसी कीमत के लिए जो से कम हो अथवा बराबर हो तथा
d1(p) = 0 किसी ऐसी कीमत पर से अधिक है। बाजार फलन क्या है?
उत्तर:
बाजार फलन = d1(P) x 20
dM(P) = (10 – 3P) x 20
d(P) = 200 – 60P
किसी भी ऐसी कीमत के लिए जो से कम हो अथवा बराबर हो। तथा dM(P) = 0 किसी ऐसी कीमत पर जो से अधिक हो।
प्र० 16. एक ऐसे बाजार को लीजिए, जहाँ केवल दो उपभोक्ता हैं तथा मान लीजिए वस्तु के लिए उनकी माँगें इस प्रकार हैं-
वस्तु के लिए बाजार माँग की गणना कीजिए।
उत्तर: बाजार माँग
प्र० 17. सामान्य वस्तु से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जिस वस्तु का आय के साथ धनात्मक संबंध हो अर्थात् उपभोक्ता की आय बढ़ने पर जिस वस्तु की माँग बढ़ती हो तथा उपभोक्ता की आय कम होने पर जिस वस्तु की माँग बढ़ती हो तथा उपभोक्ता की आय कम होने पर जिस वस्तु की माँग कम होती हो वह सामान्य वस्तु कहलाती है।
प्र० 18. निम्नस्तरीय वस्तु को परिभाषित कीजिए। कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर: ऐसी वस्तु जिसको आय के साथ ऋणात्मक संबंध होता है अर्थात् उपभोक्ता की आय बढ़ने पर जिस वस्तु की माँग कम होती है तथा उपभोक्ता की आय कम होने पर जिस वस्तु की माँग बढ़ती है, वह निम्नस्तरीय वस्तु कहलाती है। कोई भी वस्तु निम्नस्तरीय है या सामान्य यह उपभोक्ता की प्राथमिकताओं पर निर्भर करता है। जो वस्तु एक उपभोक्ता के लिए सामान्य है वह किसी अन्य के लिए निम्नस्तरीय हो सकती है फिर भी साधारणतः जो वस्तुएँ निम्नस्तरीय वस्तु की श्रेणी में आती हैं उनके उदाहरण हैं-ज्वार, बाजरी, साप्ताहिक बाजारों में बिकने वाला माल, टोन्ड दूध आदि।
प्र० 19. स्थानापन्न वस्तु को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के स्थानापन्न हैं।
उत्तर: वे वस्तुएँ जो एक मानव इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे के स्थान पर उपयोग में आ सकती हैं वे प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ कहलाती हैं उदाहरण-चाय और कॉफी, नोकिया और सैमसंग के मोबाइल, वोडाफान और एयरटेल का कनैक्शन आदि।
प्र० 20. पूरकों को परिभाषित कीजिए। ऐसी दो वस्तुओं के उदाहरण दीजिए जो एक-दूसरे के पूरक हैं।
उत्तर: वे वस्तुएँ जो किसी मानव इच्छा की पूर्ति के लिए एक साथ प्रयोग होते हैं पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। उदाहरण–समोसा और चटनी, मोबाइल फोन और सिम, बिजली और बिजली उपकरण।
प्र० 21. माँग की कीमत लोच को परिभाषित कीजिए।
उत्तर: किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने से उस वस्तु की माँग की जाने वाली मात्रा के संख्यात्मक माप को माँग की कीमत लोच कहा जाता है। अन्य शब्दों में माँग की कीमत लोच वस्तु की माँग की गई मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन और वस्तु की कीमत में प्रतिशत परिवर्तन का अनुपात है।
प्र० 22. एक वस्तु की माँग पर विचार करें। 4 ₹ की कीमत पर इस वस्तु की 25 इकाइयों की माँग है। मान लीजिए वस्तु की कीमत बढ़कर 5 ₹ हो जाती है तथा परिणामस्वरूप वस्तु की माँग घटकर 20 इकाइयाँ हो जाती है। कीमत लोच की गणना कीजिए।
प्र० 23. माँग वक्र D(p) = 10 – 3 p को लीजिए। कीमत पर लोच क्या है?
प्र० 24. मान लीजिए किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच – 0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 5% की वृद्धि होती है, तो वस्तु के लिए माँग में कितनी प्रतिशत कमी आएगी?
प्र० 25. मान लीजिए, किसी वस्तु की माँग की कीमत लोच – 0.2 है। यदि वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होती है तो उस पर होने वाला व्यय किस प्रकार प्रभावित होगा?
उत्तर: माँग की कीमत लोच इकाई से कम है अतः कीमत में वृद्धि होने पर वस्तु पर होने वाला व्यय बढ़ेगा।
प्र० 26. मान लीजिए कि किसी वस्तु की कीमत में 4% की गिरावट होने के परिणामस्वरूप उस पर होने वाले व्यय में 2% की वृद्धि हो गई। आय माँग की लोच के बारे में क्या कहेंगे? |
उत्तर: वस्तु की कीमत कम होने पर कुल व्यय में वृद्धि हो तो वस्तु की माँग की कम कीमत लोच इकाई से अधिक होगी, परन्तु वास्तविक मान क्या होगा यह कुल व्यय विधि द्वारा ज्ञात नहीं किया जा सकता।
[MORE QUESTIONS SOLVED] (अन्य हल प्रश्न)
I. बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
1. सीमान्त उपयोगिता किसके बराबर होती है?
(क) TUn + TUn-1
(ख) TUn -1 – TUn
(ग) TUn – TUn-1
(घ) TUn-1 + TUn
2. कुल उपयोगिता किसके बराबर होती है?
(क) MUn – MUn-1
(ख) MUn + MUn-1
(ग) MU का योग
(घ) MUn/Qn
3. जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता
(क) सकारात्मक होती है।
(ख) नकारात्मक होती है
(ग) शून्य होती है।
(घ) बढ़ती है।
4. जब कुल उपयोगिता घटने लगती है तो सीमान्त उपयोगिता
(क) सकारात्मक होती है
(ख) नकारात्मक होती है
(ग) शून्य होती है।
(घ) घटती है।
5. यदि वस्तु X सीमान्त उपयोगिता बढ़ रही है तो इसका अर्थ है कि ।
(क) वस्तु X पर हासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम लागू नहीं होता
(ख) वस्तु Y पर हासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम लागू नहीं होता
(ग) क व ख दोनों
(घ) क व ख में से कोई नहीं
6. एक उपभोक्ता को एक वस्तु की 10 इकाइयों से कुल उपयोगिता 100 तथा 110 इकाइयों से कुल उपयोगिता 110 मिल रही है तो सीमान्त उपयोगिता है
(क) 210
(ख) – 10
(ग) 10
(घ) 90
7. एक उपभोक्ता एक वस्तु की 10 इकाइयों का उपभोग कर चुका है। 10 वीं इकाई पर उसकी सीमान्त उपयोगिता 12 यूटिल है जबकि वस्तु की बाजार कीमत 10 है तथा उसके लिए मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता (MUm) 1 यूटिल है। ऐसे में उसे (Hint: उपभोक्ता संतुलन MUn / Pn = MUm)
(क) वस्तु X का उपभोग बढ़ाना चाहिए
(ग) वस्तु X का उपभोग रोक देना चाहिए
(ख) वस्तु X का उपभोग कम करना चाहिए।
(घ) वस्तु X खरीदना बन्द कर देना चाहिए।
8. दो वस्तुओं की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन में होता है जब
(क) वस्तु X का उपभोग बढ़ाना चाहिए
(ख) वस्तु X का उपभोग कम करना चाहिए
(ग) वस्तु Y का उपभोग बढ़ाना चाहिए
(घ) वस्तु Y का उपभोग कम करना चाहिए
(क) वस्तु X का उपभोग बढ़ाना चाहिए।
(ख) वस्तु X का उपभोग कम करना चाहिए
(ग) वस्तु Y का उपभोग बढ़ाना चाहिए
(घ) वस्तु Y का उपभोग कम करना चाहिए
11. अनाधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होगा जब
(क) सीमान्त प्रतिस्थापन दर घट रही है
(ख) सीमान्त प्रतिस्थापन दर बढ़ रही है।
(ग) सीमान्त प्रतिस्थापन दर समान है।
(घ) उपरोक्त कोई नहीं
12. अनाधिमान वक्र नीचे की ओर ढलान वाला होता है क्योंकि
(क) उपभोक्ता विवेकशील है ।
(ख) सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर घट रही है।
(ग) उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान मान्यता है
(घ) उपरोक्त सभी
13. तटस्थता वक्र का ढलान …………. के बराबर होता है।
(क) – NRSny
(ख) + NRSny
(ग) – Pn/Py
(घ) + Pn/Py
14. बजट रेखा समीकरण
(क) Pn Qn + Py Qy = y
(ख) Pn Qn + Py Qy ≤ y
(ग) Pn Qn + Py Qy ≥ y
(घ) Pn Qn + Py Qy ≠ y
15. बजट रेखा का ढाल (Slope of budget line) बढ़ जायेगा यदि
(क) वस्तु y की कीमत बढ़ जाये
(ख) वस्तु x की कीमत बढ़ जाये
(ग) वस्तु y की कीमत घट जाये
(घ) वस्तु y की कीमत घट जाये
16. बजट रेखा का ढाल ——- के बराबर होता है।
(क) – MRSny
(ख) + MRSny
(ग) – Pn/Py
(घ) + Pn/Py
17. आय बढ़ने पर बजट रेखा
(क) दाँई ओर खिसक जायेगी
(ख) बाईं ओर खिसक जायेगी
(ग) बजट रेखा x अक्ष पर आगे की ओर खिसकेगी।
(घ) बजट रेखा y अक्ष पर आगे की ओर खिसकेगी।
प्र० 18-22 का उत्तर दिए गए चित्र के आधार पर दीजिए।
18. कौन सा बिन्दु अप्राप्य संयोजन को दर्शा रहा है? (क) A
(ख) B
(ग) C
(घ) D
19. कौन सा बिन्दु आय के पूर्ण खर्च न होने को दर्शा रहा है?
(क) A
(ख) C
(ग) D
(घ) E
20. कौन सा बिन्दु उपभोक्ता संतुलन को दर्शा रहा है?
(क) A
(ख) C
(ग) D
(घ) E
21. किस बिन्दु पर MRSxy > Pn/Py
(क) A
(ख) B
(ग) C
(घ) E
22. किस बिन्दु पर MRSxy < Pn/Py
(क) A
(ख) B
(ग) C
(घ) E
23. उपभोक्ता संतुलन में होता है जब
24. यदि एक व्यक्ति की आय ₹ 1000 है जिसे वह दो वस्तुओं x और y पर खर्च करता है जिनकी कीमत क्रमशः ₹ 2 तथा ₹ 5 है तो उसका बजट रेखा समीकरण क्या होगा?
(क) 5Qn + 2Qy ≤ 1000
(ख) 2Qn + 5Qy ≤ 1000
(ग) 2Qn + 5Qy = 1000
(घ) 5Qn + 5Qy = 1000
25. यदि प्रश्न 24 में उपभोक्ता सारी आय वस्तु पर खर्च करे तो वह x की कितनी मात्रा खरीद सकता है?
(क) 200
(ख) 500
(ग) 100
(घ) 1000
26. यदि प्रश्न 24 में उपभोक्ता सारी आय वस्तु y पर खर्च करे तो वहy की कितनी मात्रा खरीद सकता है?
(क) 200
(ख) 500
(ग) 100
(घ) 1000
27. प्रश्न 24 में उपभोक्ता संतुलन में MRS., कितना होगा?
(क) – 1000/2
(ख) – 2/1000
(ग) – 2/5
(घ) – 5/2
28. तटस्थता वक्र एक सीधी रेखा होगा यदि
(क) सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर घट रही है।
(ख) सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर बढ़ रही है।
(ग) सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर समान है
(घ) सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर शून्य है।
29. माँग का नियम वस्तु की कीमत तथा माँग की गई मात्रा में ……….. संबंध दर्शाता है।
(क) सीधा
(ख) शून्य
(ग) विपरीत
(घ) धनात्मक
30. यदि आय बढ़ने पर उपभोक्ता वस्तु x की माँग बढ़ाता है तो वस्तु x कैसी वस्तु है?
(क) सामान्य वस्तु
(ख) निम्नकोटि वस्तु
(ग) गिफ्फिन वस्तु
(घ) पूरक वस्तु
31. निम्नकोटि वस्तु की माँग आय बढ़ने पर।
(क) कम हो जायेगी
(ख) बढ़ जायेगी।
(ग) समान रहेगी
(घ) इनमें से कोई नहीं
32. माँग वक्र में संकुचन कब होता है?
(क) कीमत बढ़ने पर
(ख) कीमत घटने पर
(ग) आय बढ़ने पर
(घ) आय घटने पर
33. वे वस्तुएँ जिनका आय प्रभाव ऋणात्मक होता है ………… कहलाती हैं।
(क) सामान्य वस्तु
(ख) निम्नकोटि वस्तु
(ग) प्रतिस्थापन वस्तु
(घ) गिफ्फिन वस्तु
34. वस्तुओं का माँग वक्र धनात्मक ढलान वाला होता है।
(क) सामान्य वस्तु
(ख) निम्नकोटि वस्तु
(ग) प्रतिस्थापन वस्तु
(घ) गिफ्फिन वस्तु
35. वस्तु x की कीमत बढ़ने पर यदि वस्तु y की माँग कम हो जाए तो x और y कैसी वस्तुएँ हैं?
(क) प्रतिस्थापन वस्तुएँ
(ख) पूरक वस्तुएँ
(ग) सामान्य वस्तुएँ
(घ) निम्नकोटि वस्तुएँ
36. आय बढ़ने पर माँग वक्र
(क) दाँईं ओर खिसकता है।
(ख) बाँईं ओर खिसकता है।
(ग) सामान्य वस्तु की स्थिति में दाँई ओर खिसकता है तथा निम्नकोटि वस्तु की स्थिति में बाँई ओर खिसकता है।
(घ) सामान्य वस्तु की स्थिति में बाँई ओर खिसकता है तथा निम्नकोटि वस्तु की स्थिति में दाईं ओर खिसकता है।
37, माँग वक्र में खिसकाव का कारण है।
(क) वस्तु की कीमत में परिवर्तन
(ख) आय में परिवर्तन
(ग) रुचि में परिवर्तन ।
(घ) कीमत के अतिरिक्त किसी अन्य कारक में परिवर्तन
38. प्रचार करने से वस्तु को माँग वक्र
(क) दाँईं ओर खिसकेगा
(ख) बाईं ओर खिसकेगा
(ग) माँग में विस्तार होगा
(घ) माँग में संकुचन होगा।
39. कीमत में परिवर्तन से क्रय शक्ति में होने वाले परिवर्तन को क्या कहा जाता है?
(क) कीमत प्रभाव
(ख) प्रतिस्थापन प्रभाव
(ग) आय प्रभाव
(घ) इनमें से कोई नहीं
40. प्रतिष्ठात्मक वस्तु की कीमत बढ़ गई। इसकी माँग पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(क) माँग विस्तृत होगी
(ख) माँग में वृद्धि होगी
(ग) माँग संकुचित होगी
(घ) माँग में कमी होगी
41. माँग की कीमत लोच बराबर
42. माँग की कीमत लोच जब इकाई के बराबर हो तो माँग वक्र का आकार कैसा होगा?
(क) सीधी रेखा ।
(ख) क्षैतिज रेखा
(ग) आयताकार अतिपरवलय ।
(घ) तिरछी रेखा
43. बेलोचदार माँग का अर्थ है।
(क) EDp = 0
(ख) EDp > 1
(ग) EDp < 1 (घ) EDp = ∞ 44. यदि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के बिना ही उस वस्तु की माँग में वृद्धि होती जाए तो उस वस्तु की माँग की कीमत लोच कितनी होगी? (क) ED = 0 (ख) ED > 1
(ग) EDy < 0
(घ) ED = ∞
45. एक सीधी रेखा नीचे की ओर ढलान वाले माँग वक्र के मध्य बिन्दु पर माँग की लोच होती है।
(क) शून्य
(ख) अनंत
(ग) एक
(घ) एक से कम
46. शून्य कीमत पर माँग की कीमत लोच कितनी होगी?
(क) शून्य
(ख) अनंत
(ग) इकाई
(घ) इकाई से कम
47. एक वस्तु की कीमत बढ़ने पर उस वस्तु पर उपभोक्ता द्वारा किया जाने वाला कुल व्यय बढ़ गया। उस वस्तु की माँग की लोच कितनी होगी?
(क) शून्य
(ख) अनंत
(ग) इकाई
(घ) इकाई से कम
48. जब माँग वक्र -अक्ष के समांतर होता है तो माँग की लोच कितनी होगी?
(क) इकाई
(ख) शून्य
(ग) अनंत
(घ) इकाई से अधिक
49. यदि किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन से वस्तु पर किया जाने वाला कुल व्यय समान रहे तो माँग की कीमत लोच कितनी होगी?
(क) शून्य
(ख) अनंत
(ग) इकाई से कम
(घ) इकाई
50. नीचे दी गई तालिका एक वस्तु की कीमत व माँग दर्शा रही है।
माँग की कीमत लोच क्या है?
(क) 0.5
(ख) 1
(ग) 2
(घ) 1.5
51. नीचे दी गई तालिका से बताइए कि माँग की कीमत लोच कितनी है?
(क) EDp > 1
(ख) EDp < 1
(ग) EDp = 1
(घ) EDp = 0
52. किसी वस्तु की कीमत 10% बढ़ने से उसका व्यय भी 10% बढ़ गया तो उस वस्तु की कीमत लोच कितनी है?
(क) EDp = 1
(ख) EDp = 0
(ग) EDp < 1 (घ) EDp > 1
53. एक वस्तु की माँग की लोच कम होगी यदि
(क) उसकी प्रतिस्थापन वस्तुएँ उपलब्ध हो
(ख) उसका उपभोग स्थगित न हो सकता हो।
(ग) वह अनिवार्य वस्तु हो।
(घ) उपरोक्त सभी
54. ज्यामितिय विधि के अनुसार, माँग वक्र में अक्ष पर माँग की कीमत लोच कितनी होगी?
(क) 0
(ख) 1
(ग) ∞
(घ) 2
55. दवाइयों की माँग बेलोचदार होती है क्योंकि
(क) यह अनिवार्य वस्तु है।
(ख) इसका उपभोग स्थगित नहीं हो सकता है।
(ग). इसकी प्रतिस्थापन वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हैं
(घ) उपरोक्त सभी
56. निम्नलिखित में से किस वस्तु की माँग लोचदार होगी?
(क) दियासिलाई
(ख) पानी
(ग) सुई
(घ) दूध
उत्तर
1. (ग)
2. (ग)
3. (ग)
4. (ख)
5. (क)
6. (ख)
7. (क)
8. (ग)
9. (क)
10. (ग)
11. (क)
12. (ग)
13. (क)
14. (ख)
15. (ख)
16. (ग)
17. (क)
18. (घ)
19. (ख)
20. (घ)
21. (क)
22, (ख)
23. (क)
24. (ख)
25. (ख)
26. (क)
27. (ग)
28. (ग)
29. (ग)
30. (क)
31. (ग)
32. (क)
33. (ख)
34. (घ)
35. (ख)
36. (ग)
37, (घ)
38. (क)
39. (ग)
40. (क)
41. (घ)
42. (ग)
43. (ग)
44. (घ)
45. (ग)
45. (ग)
46. (ख)
47. (घ)
48. (ख)
49. (घ)
50. (क)
51. (ख)
52. (ग)
53. (घ)
54 (क)
55. (घ)
56. (घ)
II. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्र० 1. कुल उपयोगिता और सीमान्त उपयोगिता के बीच संबंध समझाइए। (Foreign 2011)
उत्तर: जैसे-जैसे किसी वस्तु की अधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है, वैसे-वैसे प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता घटती जाती है। अतः इसी नियम के आधार पर कुल उपयोगिता तथा सीमान्त उपयोगिता में संबंध इस प्रकार है
(i) जब कुल उपयोगिता घटती दर से बढ़ती है तो सीमान्त उपयोगिता घटती है परन्तु धनात्मक रहती है।
(ii) जब कुल उपयोगिता अधिकतम होती है तो सीमान्त उपयोगिता शून्य होती है।
(iii) जब कुल उपयोगिता घटने लगती है तो सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है। इसे एक तालिका तथा | चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है-
इस तालिका से 5वीं इकाई तथा कुल उपयोगिता घटती दर से बढ़ रही है। 6ठीं इकाई पर कुल उपयोगिता अधिकतम है। नवीं इकाई से कुल उपयोगिता घटने लगी तथा सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो गई।
इस तालिका में बिन्दु A तक TU घटती दर पर बढ़ रहा है अत: MU घट रहा है परन्तु धनात्मक है।
बिन्दु A पर TU अधिकतम है तथा इसके समान्तर बिन्दु B पर MU शून्य है।
बिन्दु A के बाद TU घटने लगा अतः MU ऋणात्मक हो गया।
प्र० 2. हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम की कुल उपयोगिता अनुसूची की सहायता से व्याख्या कीजिए। (All India 2011, Delhi 2013, 14)
अथवा
‘सीमान्त उपयोगिता’ से क्या अभिप्राय है? एक उपयोगिता अनुसूची की सहायता से हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम समझाइए। (Foreign 2011)
उत्तर: किसी वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने से प्राप्त होने वाली अतिरिक्त उपयोगिता को सीमान्त उपयोगिता कहते हैं।
ह्मसमान सीमान्त उपयोगिता नियम – हासमान सीमान्त उपयोगिबा के नियम के अनुसार जब किसी वस्तु की अधिक से अधिक इकाइयों का उपभोग किया जाता है, तब प्रत्येक अतिरिक्त इकाई से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता कम होती जाती है।
मान्यताएं
(i) वस्तु का उपभोग मानक इकाइयों में किया जाता है जैसे एक गिलास पानी न कि एक बूंद या एक चम्मच पानी।
(ii) वस्तु का योग निरंतर है?
(iii) वस्तु की सभी इकाइयाँ समान हैं।
यहाँ दी गई तालिका से स्पष्ट है कि जैसे-जैसे उपभोग की मात्रा बढ़ाई जा रही है सीमान्त उपयोगिता घटती जा रही है और घटते-घटते शून्य के उपरान्त ऋणात्मक हो गई है। इसे नीचे दिये गए वक्र द्वारा दर्शाया जा रहा है।
प्र० 3. वे शतें समझाइए, जिनसे यह निर्धारित होता है कि किसी कीमत पर उपभोक्ता वस्तु की कितनी इकाई खरीदेगा। (Delhi 2011)
अथवा
एक वस्तु की दी गई कीमत पर एक उपभोक्ता यह निर्णय कैसे लेता है कि उस वस्तु की कितनी मात्रा खरीदे? (All India 2014, Delhi 2012)
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन एक ऐसी स्थिति है जिसमें उपभोक्ता अपनी दी हुई आय को दी हुई बाजार कीमत पर एक वस्तु/वस्तुओं के संयोजनों पर इस प्रकार खर्च करता है कि वह अपनी कुल संतुष्टता को अधिकतम कर सके। एक वस्तु की खरीद में उपभोक्ता संतुलन में तब होता है, जब उस वस्तु की मुद्रा में मापी गई सीमान्त उपयोगिता x उस वस्तु की कीमत के बराबर हो। समीकरण के रूप में, एक उपभोक्ता संतुलन में होता है, जब,
प्र० 4. उपयोगिता विश्लेषण की सहायता से दो वस्तुओं की स्थिति में उपभोक्ता के संतुलन की शर्तों की व्याख्या कीजिए। (Delhi 2013, 2014)
अथवा
यह मानते हुए कि एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं का उपभोग करता है, उपभोक्ता विश्लेषण की सहायता से उपभोक्ता संतुलन की शर्ते समझाइए। (Foreign 2014)
उत्तर: जब उपभोक्ता अपनी निश्चित आय दो वस्तुओं पर खर्च करता है, तब उपभोक्ता संतुलन उस स्थिति में होता है जहाँ
प्र० 5. एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं x और y का उपभोग करता है और संतुलन में है। वस्तु x का मूल्य घट जाता है। उपयोगिता विश्लेषण से उपभोक्ता की प्रतिक्रिया समझाइए। (All India 2012)
अथवा
अथवा
एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं का उपभोग करता है और संतुलन में है। समझाइए कि कैसे जब वस्तु x की कीमत गिरती है, तो वस्तु x की माँग बढ़ती है। उपयोगिता विश्लेषण का प्रयोग करें। (Foreign 2014)
उत्तर:
ऐसे में वह संतुलन में होगा जब वह वस्तु की 5 इकाइयाँ खरीद रहा है।
अतः वस्तु = की कीमत घटने पर वह वस्तु x की उपभोग की जाने वाली मात्रा में वृद्धि करेगा।
प्र० 6, एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं का उपभोग करता है और वह संतुलन में है। * की कीमत बढ़ जाती है। उपयोगिता विश्लेषण की सहायता से उपभोक्ता की प्रतिक्रिया समझाइए। (Foreign 2012)
अथवा
एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं 3 और 3 का उपभोग करता है। वह संतुलन में है। दिखाइए कि जब वस्तु * की कीमत बढ़ती है तो उपभोक्ता वस्तु की मात्रा कम खरीदता है। उपयोगिता विश्लेषण का उपयोग कीजिए। (All India 2014)
उत्तर:
अतः वस्तु 4 की कीमत घटने पर वह वस्तु y की उपभोग की जाने वाली मात्रा कम करेगा।
प्र० 7. बजट सेट की परिभाषा दीजिए। (Delhi 2011)
अथवा
बजट रेखा की परिभाषा दीजिए। (All India 2011)
अथवा
बजट रेखा क्या होती है? (Foreign 2013)
अथवा
बजट सेट और बजट रेखा में अन्तर कीजिये।
उत्तर: बजट सेट – यह दो वस्तुओं के एक समूह के प्राप्य संयोगों को व्यक्त करता है जब वस्तुओं की कीमतें तथा उपभोक्ता की आय दी हुई हो।
बजट रेखा – जब इन संयोगों को एक रेखा चित्र पर दर्शाया जाता है तो बजट रेखा प्राप्त होता है। अतः दो। वस्तुओं के प्राप्य संयोगों के रेखाचित्र प्रस्तुतीकरण को बजट रेखा कहा जाता है।
उदाहरण – मान लो एक उपभोक्ता की आय ₹ 40 है जिसे उसे दो वस्तुओं पर खर्च करना है, जिनकी कीमत ₹ 5 तथा ₹ 10 है तो बजट सेट इस प्रकार होगा।
प्र० 8. बजट रेखा की परिभाषा दीजिए। यह दाईं ओर कब खिसक सकती ? (All India 2012)
उत्तर: दी हुई आय तथा दो वस्तुओं की कीमत की स्थिति में एक उपभोक्ता द्वारा प्राप्त दो वस्तुओं के सभी समूहों के बिन्दु पथ को जोड़ने वाली रेखा को बजट रेखा कहा जाता है।
आय में वृद्धि यह दाईं ओर खिसकती है जब उपभोक्ता की आय बढ़ जाये, क्योंकि आय बढ़ने पर उपभोक्ता दोनों वस्तुओं की मात्रा पहले से अधिक खरीद सकता है।
प्र० 9. संख्यात्मक उपयोगिता और श्रेणीबद्ध (क्रमसूचक) उपयोगिता के बीच अन्तर बताइए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
1. संख्यात्मक उपयोगिता के अनुसार उपयोगिता को संख्यात्मक रूप में मापा जा सकता है तथा व्यक्त किया जा सकता है। जैसे- 2, 4, 6, 8 यूटिल आदि।। श्रेणीबद्ध (क्रमसूचक) उपयोगिता के अनुसार उपयोगिता को संख्यात्मक रूप में नहीं मापा जा सकता, परन्तु उसकी संतुष्टि के उच्च या निम्न स्तर के रूप में तुलना की जा सकती है, यह नहीं बताया जा सकता कि उसे पंखे, कूलर और एसी से क्रमशः कितनी उपयोगिता मिलती है, परन्तु वह यह बता सकता है कि उसे पंखे से अधिक उपयोगिता कूलर एवं कूलर से अधिक उपयोगिता एसी से मिलती है अर्थात् वह उपयोगिता को क्रमबद्ध कर सकता है।
2. संख्यात्मक उपयोगिता की अवधारणा एल्फर्ड मार्शल द्वारा दी गई, जबकि श्रेणीबद्ध (क्रमसूचक) उपयोगिता की अवधारणा हिक्स द्वारा दी गई।
3. संख्यात्मक उपयोगिता की अवधारणा अवास्तविक है जबकि श्रेणीबद्ध उपयोगिता की अवधारणा अधिक वास्तविक है।
उदाहरण- संख्यात्मक उपयोगिता वस्तु की मात्रा
क्रमबद्ध उपयोगिता-
वस्तु x की उपयोगिता > वस्तु y की उपयोगिता
वस्तु x की उपयोगिता < वस्तु z की उपयोगिता ।
वस्तु x की उपयोगिता = वस्तु u की उपयोगिता
प्र० 10. बजट रेखा क्या होती है? वह नीचे की ओर ढलवाँ क्यों होती है? (All India 2013)
उत्तर: यह वह रेखा है जो दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों के समूह को प्रकट करती है, जो उपभोक्ता अपनी दी हुई आय तथा वस्तुओं की दी हुई कीमतों पर खरीद सकता है। यह नीचे की ओर ढलवां होती है, क्योंकि दी हुई आय तथा वस्तुओं की दी हुई कीमत पर बिना एक वस्तु की मात्रा कम किए दूसरी वस्तु की मात्रा बढ़ाना संभव नहीं है। जब भी दो चरों में ऐसा संबंध हो कि 3 के घटने पर y बढ़े तथा y के बढ़ने पर x घटे तो उसका वक्र नीचे की ओर ढलवां होगा।
प्र० 11. बजट रेखा एक सीधी रेखा क्यों होती है?
उत्तर: कोई भी रेखा एक सीधी रेखा होती है जब उसकी ढलान समान तथा स्थिर हो। बजट रेखा की ढलान दो वस्तुओं के कीमत अनुपात के बराबर होती है।
बजट रेखा की ढलान = -Px/Py
Px तथा Py अर्थात् वस्तु x की कीमत एवं वस्तु y की कीमत स्थिर है, अतः बजट रेखा एक सीधी रेखा होती
प्र० 12. एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से ‘सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर’ की अवधारणा समझाइए। (Foreign 2012)
अथवा
एक संख्यात्मक उदाहरण की सहायता से प्रतिस्थापन्न की हासमान सीमान्त दर का अर्थ समझाइए। (All India 2013)
अथवा
हासमान सीमान्त प्रतिस्थापन दर का अर्थ समझाइए। (Foreign 2013)
उत्तर: सीमान्त प्रतिस्थापन दर तटस्थता वक्र के ढलान के समान है। यह वस्तु x की उस मात्रा को प्रकट करती है,
जो उपभोक्ता वस्तु x की एक अधिक इकाई के लिए त्याग करने को इच्छुक होता है।
सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर = इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है।
वस्तु x की पहली इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 5 इकाइयाँ त्यागने को तैयार है। वस्तु x की दूसरी इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 4 इकाइयाँ त्यागने को तैयार है। वस्तु x की तीसरी इकाई पाने के लिए। उपभोक्ता वस्तु y की 3 इकाइयाँ छोड़ने को तैयार है। वस्तु की चौथी इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 2 इकाइयां त्यागने को तैयार है। वस्तु y की पांचवीं इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 1 इकाई त्यागने को तैयार है। सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर (MRD, लगातार कम हो रही है इसीलिए तटस्थता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है यह कम इसीलिए होती है क्योंकि ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम कार्यशील है। जो वस्तु उपभोक्ता
के पास अधिक होती है उसकी सीमान्त उपयोगिता उसके लिए कम होती है।
प्र० 13. अनाधिमान चित्र की परिभाषा दीजिए। समझाइए कि दाँई ओर के अनाधिमान वक्र पर संतुष्टि का स्तर ऊंचा क्यों होता है? (Delhi 2012)
अथवा
एक अनाधिमान मानचित्र की परिभाषा दीजिये। समझाइये कि क्यों दाँई ओर के अनाधिमान वक्र पर उपयोगिता का स्तर ऊँचा होता है? (All India 2012)
उत्तर: अनाधिमान चित्र एक उपभोक्ता के तटस्थता समूह का रेखाचित्रिय प्रस्तुतीकरण हैं यह उन सभी बिन्दुओं को जोड़ने से प्राप्त होता है, जो दो वस्तुओं के विभिन्न ऐसे संयोगों को प्रकट करता है, जिससे उपभोक्ता को संतुष्टि का समान स्तर प्राप्त होता है। दाँई ओर के अनाधिमाने वक्र पर संतुष्टि का स्तर है उपभोक्ता के एकदिष्ट छु अधिमान के कारण ऊँचा होता है। दाँई ओर के अनाधिमान वक्र में या तो वस्तु x पहले से अधिक होती है या वस्तु y पहले से अधिक होती है या दोनों ही वस्तुएँ पहले से अधिक होती हैं। इसका निहितार्थ है कि उपभोक्ता के लिए दोनों वस्तुओं की सीमान्त उपयोगिता सकारात्मक है। अतः उपभोक्ता कम वस्तु से ज्यादा प्राथमिकता अधिक वस्तु को देते हैं।
प्र०14. एकदिष्ट अधिमान से क्या अभिप्राय है? समझाइए कि दाँई ओर का अनाधिमान वक्र अधिक उपयोगिता क्यों दर्शाता है? (Foreign 2012)
उत्तर: एकदिष्ट अधिमान का अर्थ है कि एक उपभोक्ता सदा कम वस्तु की तुलना में, अधिक वस्तु को अधिक पसंद करता है। यदि उपभोक्ता को दो संयोजन दिये जाएं (10, 8), (10, 10) तो एकदिष्ट अधिमान के अन्तर्गत वह (10, 10) को (10, 8) से कहीं अधिक प्राथमिकता देगा।
दाँईं ओर का अनधिमान वक्र अधिक उपयोगिता दर्शाता है, क्योंकि इस पर या तो x समान y अधिक या y समान x अधिक या x एवं y दोनों पहले से अधिक होते हैं।
प्र०15. अनाधिमान वक्र विश्लेषण की सहायता से उपभोक्ता के संतुलन की व्याख्या कीजिए। (Delhi 2013, 2014)
अथवा
अनाधिमान वक्र विश्लेषण में उपभोक्ता संतुलन की शर्ते बताइए और इन शर्तों के पीछे औचित्य समझाइए। (Foreign 2013)
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उपभोक्ता के ईष्टतम चयन से है। यह तब प्राप्त होता है जब उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। तटस्थता वक्र विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता अपना संतुलन तब प्राप्त करता है जब
(क) IC का ढलान = कीमत रेखा की ढलान
(ख) तटस्थता वक्र उस बिंदु पर उन्नतोदर होता है जहाँ MRS (सीमान्त प्रतिस्थापन्न की दर) = Px/Py
अब इन्हें विस्तृत रूप से समझते हैं
(ख) संतुलन बिन्दु पर तटस्थता वक्र उन्नतोदर होना चाहिए इसका कारण यह है कि तटस्थता वक्र का उन्नतोदर होना घटती हुई सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर (MRS) को व्यक्त करता है। उपभोक्ता वस्तु x की प्रत्येक अगली | इकाई के लिए वस्तु 3 की कम से कम मात्रा त्यागने का इच्छुक होता | है। यह हासमान उपयोगिता के नियम के अनुसार होता है। उपभोक्ता संतुलन को नीचे एक रेखाचित्र के माध्यम से दिखाया गया है। चित्र से स्पष्ट होता है कि किस प्रकार उपभोक्ता संतुष्टि के अधिकतमकरण के रूप में अपना संतुलन प्राप्त करता है यह माना जाता है कि उपभोक्ता अपनी दी हुई आय को वेवल वस्तु = तथा y पर खर्च करता है। Px तथा Py बाजार में दिये हुए हैं। उपभोक्ता बिन्दु पर संतुलन में है, जहां उपभोक्ता संतुलन की दोनों शर्ते पूर्ण हो रही हैं अर्थात्
(i) Pn/Py = MRDxy
(ii) तटस्थता वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
प्र० 16. एक बजट रेखा पर निम्नलिखित को दर्शाइए
(क) प्राप्य संयोजन
(ख) अप्राप्य संयोजन
(ग) ऐसे संयोजन जिसमें पूर्ण आय खर्च हो रही हो।
उत्तर:
प्र० 17. वस्तु की माँग को प्रभावित करने वाले किन्हीं तीन कारकों की व्याख्या करें।
अथवा
समझाइए कि किसी वस्तु की माँग उसकी संबंधित वस्तुओं की कीमतों से कैसे प्रभावित होती है? उदाहरण दीजिए।
अथवा
समझाइए कि उपभोक्ता की आय में वृद्धि से किसी वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण दीजिए। (Delhi 2011)
अथवा
संबंधित वस्तुओं की कीमतें कम होने से दी गई वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है? उदाहरण सहित समझाइए। (Foreign 2011)
अथवा
समझाइए कि निम्नलिखित को वस्तु की माँग पर क्या प्रभाव पड़ता है?
(i) उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि
(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमतों में कमी (Delhi 2012, 2014)
अथवा
निम्नलिखित के बीच संबंध की व्याख्या कीजिए।
(i) अन्य वस्तुओं की कीमत और दी हुई वस्तु की माँग
(ii) क्रेताओं की आय और वस्तु की माँग (Delhi 2014)
उत्तर: मग को प्रभावित करने वाले मुख्य कारण इस प्रकार हैं
(क) वस्तु की अपनी कीमत (ऋणात्मक)- वस्तु की अपनी कीमत तथा उसकी माँगी गई मात्रा में विपरीत संबंध है। वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में कमी आ जाती है तथा वस्तु की कीमत कम होने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
(ख) संबंधित वस्तुओं की कीमत- संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं।
(i) प्रतिस्थापन वस्तुएँ ( धनात्मक) वे वस्तुएँ जिन्हें एक ही इच्छा की पूर्ति के लिए एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है वे प्रतिस्थापन वस्तुएँ कहलाती हैं। ऐसी वस्तुओं में एक वस्तु की कीमत तथा दूसरी वस्तु की मात्र में धनात्मक संबंध होता है जैसे चाय की कीमत बढ़ने पर कॉफी की माँग की मात्रा बढ़ जाती है तथा चाय की कीमत कम होने पर कॉफी की माँग की मात्रा कम हो जाती है।
(ii) पुरक वस्तुएँ (ऋणात्मक) वे वस्तुएँ जो एक ही इच्छा की पूर्ति के लिए एक साथ प्रयोग में आती हैं, पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। ऐसी वस्तुओं में एक वस्तु की कीमत तथा दूसरी वस्तु की मात्रा में ऋणात्मक संबंध होता है। जैसे दूध और चीनी दूध की कीमत बढ़ने पर चीनी की माँग कम हो जाती है तथा दूध की कीमत कम होने पर चीनी की माँग बढ़ जाती है।
(ग) उपभोक्ता की आय- उपभोक्ता की आय तथा माँग में संबंध वस्तु के प्रकार पर निर्भर करता है।
(i) सामान्य वस्तु ( धनात्मक) सामान्य वस्तु की स्थिति में आय बढ़ने पर उपभोक्ता उस वस्तु की माँग में वृद्धि करता है तथा आय कम होने पर माँग में कमी होती है।
(ii) निकोटि वस्तु (ऋणात्मक) निम्नकोटि की स्थिति में आय बढ़ने पर उपभोक्ता उस वस्तु की माँग में कमी करता है तथा आय कम होने पर उसे वस्तु की माँग में वृद्धि हो जाती है।
(घ) उपभोक्ता की रुचि तथा प्राथमिकता ( धनात्मक)- जिस वस्तु के प्रति उपभोक्ता की रुचि तथाप्राथमिकता अनुकूल होती है, उस वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तथा जिस वस्तु के प्रति उपभोक्ता की रुचि तथा प्राथमिकता प्रतिकूल होती है, उस वस्तु की माँग में कमी आती है।
प्र० 18. निम्मकोटि (घटिया) वस्तु और सामान्य वस्तुओं के बीच अन्तर समझाइए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए। (All India 2012)
अथवा
एक घटिया वस्तु और एक सामान्य वस्तु में अन्तर बताइए। क्या एक वस्तु जो कि एक उपभोक्ता के लिए घटिया है, सभी उपभोक्ताओं के लिए घटिया होती है? समझाइए। (Delhi 2014)
उत्तर:
उदाहरण – वस्तुओं को सामान्य रूप से सामान्य वस्तु या निम्नकोटि वस्तु कहना गलत है। यह प्रत्येक उपभोक्ता की रूचि तथा प्राथमिकता पर निर्भर करता है। रिक्शे द्वारा जाना सीमान्त x के लिए सामान्य वस्तु परन्तु श्रीमान् । y के लिए घटिया वस्तु हो सकता है। इसी प्रकार साप्ताहिक बाज़ार में मिलने वाले वस्त्र किसी के लिए सामान्य वस्तु तथा किसी अन्य के लिए घटिया वस्तु हो सकता है।
प्र० 19. ‘घटिया वस्तु का अर्थ बताइए और इसे एक उदाहरण की सहायता से समझाइए।
उत्तर: घटिया वस्तु ऐसी वस्तु को कहा जाता है जिसकी माँग आय बढ़ने पर कम होती है तथा आय कम होने पर बढ़ती है। यह उपभोक्ता को घटिया लगती है, अतः आय बढ़ने पर वह इसका उपभोग कम कर देता है। उदाहरण के लिए, आय बढ़ने पर उपभोक्ता रिफाइन्ड तेल का उपभोग कम कर देता है और देसी घी का उपभोग बढ़ा देता है। अतः रिफाइन्ड तेल एक घटिया वस्तु है, जबकि देसी घी एक सामान्य वस्तु है। इसी प्रकार आय बढ़ने पर व्यक्ति बस की बजाय कार में यात्रा करना पसंद करता है तो बस से यात्रा करना। उसके लिए ‘घटिया वस्तु’ है।
प्र० 20. माँग का नियम क्या है? एक माँग अनुसूची तथा माँग वक्र की सहायता से समझाइए?
उत्तर: माँग के नियम के अनुसार यदि अन्य तत्व समान रहें तो एक वस्तु की माँगी गई मात्रा तथा वस्तु की कीमत में विपरीत संबंध होता है अर्थात् वस्तु की कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा में संकुचन आ जाता है। तथा वस्तु की कीमत घटने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा विस्तृत हो जाती है। माँग के नियम की मान्यताएँ
1. उपभोक्ता विवेकशील है।
2. अन्य बातें समान रहे-
(क) उपभोक्ता की रुचि और प्राथमिकता समान रहे,
(ख) उपभोक्ता की आय समान रहे।
(ग) उपभोक्ता निकट भविष्य में कीमत परिवर्तन की संभावना न रखता हो।
(घ) संबंधित वस्तुओं की कीमत समान रहे।
माँग अनुसूची – यह माँग के नियम को तालिकाबद्ध प्रस्तुतिकरण माँग अनुसूची है। यह विभिन्न कीमतों पर एक वस्तु की माँग की जाने वाली मात्राओं को दर्शाता है। इसे नीचे दी गई तालिका द्वारा दर्शाया गया है।
माँग वक्र – यह माँग के नियम का रेखाचित्रीय प्रस्तुतिकरण है। यह एक रेखा वक्र है जो विभिन्न कीमतों पर माँग की जाने वाली मात्रा को एक वक्र द्वारा दर्शाता है। इसे दिये गये वक्र द्वारा दिखाया गया है।
प्र० 21. जब वस्तु की कीमत गिरती है तो किसी एक वस्तु को अधिक क्यों खरीदा जाता है?
अथवा
माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक क्यों होता है?
उत्तर: माँग वक्र का ढलान ऋणात्मक होता है, क्योंकि जब वस्तु की कीमत गिरती है तो उस वस्तु की मात्रा खरीदी जाती है तथा विपरीत। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
1. ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम – इस नियम के अनुसार जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की अधिक से अधिक मात्रा खरीदता है, वैसे-वैसे उस वस्तु की सीमान्त उपयोगिता उसके लिए कम होती जाती है उपभोक्ता किसी वस्तु के लिए उतनी ही कीमत देने को तैयार होता है जितनी उसके लिए उस वस्तु की सीमान्त उपयोगिता हो। अतः वह कम कीमत पर अधिक मात्रा खरीदने को तैयार हो जाता है तथा अधिक कीमत पर कम मात्रा खरीदना चाहता है।
2. आय प्रभाव – एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने के फलस्वरूप क्रेता की क्रय शक्ति पर प्रभाव पड़ता हैं इसे आय प्रभाव कहते हैं। कीमत कम होने से क्रेता की क्रय शक्ति बढ़ जाती है अतः वह वस्तु की अधिक मात्रा खरीदने को तैयार हो जाता है तथा विपरीत।
3. प्रतिस्थापन प्रभाव – जब एक वस्तु अपनी प्रतिस्थापन वस्तु की तुलना में सस्ती हो जाती है तो उसका दूसरी वस्तु के लिए प्रतिस्थापन किया जाता है। उदाहरण के लिए, जब कोलगेट की अपनी कीमत कम हो जाती है तो वह पेप्सोडेंट की तुलना में सस्ती हो जाती है। इसीलिए कोलगेट का पेप्सोडेंट के स्थान पर प्रतिस्थापन किया जाता है।
4. उपभोक्ताओं की संख्या – किसी वस्तु की कीमत कम होने से अधिक से अधिक लोग उसे खरीदना वहन कर सकते हैं तथा विपरीत। इसीलिए कीमत कम होने पर किसी वस्तु की माँगी गई मात्रा बढ़ जाती है। और कीमत बढ़ने पर वस्तु की माँगी गई मात्रा कम हो जाती है।
प्र० 22. कुछ ऐसी स्थितियाँ होती हैं जब कीमत और माँगी गई मात्रा में धनात्मक संबंध होता है। व्याख्या कीजिए।
अथवा
माँग के नियम के अपवाद क्या है?
उत्तर: कुछ ऐसी स्थितियाँ होती हैं जब माँग का नियम लागू नहीं होता और वस्तु गिफ्फिन वस्तुओं/प्रतिष्ठासूचक की कीमत तथा माँगी गई मात्रा में धनात्मक संबंध होता है अर्थात् माँग वस्तुओं की माँग वक्र का आकार धनात्मक ढलान वाला होता है।
(i) प्रतिष्ठासूचक वस्तुएँ – यह अवधारणा प्रो. बेबलन द्वारा दी गई है। इसके अनुसार कुछ वस्तुएँ ऐसी होती हैं, जिसमें सामाजिक प्रतिष्ठा प्रबल 6 होती हैं वेबलेन ने इन्हें प्रतिष्ठासूचक वस्तुओं की संज्ञा दी। ये वस्तुएँ Eि समाज में अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए खरीदी जाती हैं। इनकी कीमत | जितनी अधिक होती है इनकी माँग भी उतनी ही अधिक होती है।
(ii) गिफ्फिन वस्तुएँ – ये ऐसी निम्नकोटि वस्तुएँ होती हैं जिनका ऋणात्मक आय प्रभाव घनात्मक प्रतिस्थापन प्रभाव से अधिक होता है। ऐसी वस्तुओं के मामले में माँगी गई मात्रा और कीमत में धनात्मक संबंध होता है।
(iii) कीमत गुणवत्ता का सूचक- जब उपभोक्ता कीमत को गुणवत्ता के सूचक के रूप में लेता है तब भी | माँग का नियम लागू नहीं होता। ऐसे में उपभोक्ता को लगता है कि जिस वस्तु की कीमत अधिक है, अवश्य ही उसकी गुणवत्ता बेहतर है।
(iv) आपातकालीन स्थिति- किसी आपातकालीन स्थिति जैसे युद्ध, सूखा, बाढ़ आदि में भी माँग का नियम लागू नहीं होता।
प्र० 23. पूरक वस्तुओं और प्रतिस्थापन्न वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्र० 24. व्यक्तिगत माँग और बाजार माँग में एक अनुसूची की सहायता से अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर: व्यक्तिगत माँग से अभिप्राय बाजार में एक व्यक्तिगत क्रेता की (किसी वस्तु की) माँग अनुसूचि से है। यह एक व्यक्ति द्वारा एक निश्चित समयावधि में वस्तु की विभिन्न कीमतों पर वस्तु की माँगी गई मात्राओं के संबंध को प्रकट करती है।
बाजार माँग – यह किसी वस्तु की बाजार में सभी क्रेताओं द्वारा की जाने वाली कुल माँग का परिचायक है। यह किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर विभिन्न मात्राओं को प्रकट करता है, जो सभी उपभोक्ता मिलकर एक निश्चित समय अवधि के लिए खरीदने के इच्छुक होते हैं। इसे नीचे दी गई तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है जिसमें यह मान्यता है कि बाजार में केवल तीन उपभोक्ता हैं
तालिका से यह स्पष्ट है कि बाजार माँग व्यक्तिगत उपभोक्ताओं की माँग का योग है।
प्र० 25. माँग में वृद्धि तथा माँग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्र० 26. माँग में कमी तथा माँग में संकुचन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर:
प्र० 27. माँग की कीमत लोच से आप क्या समझते हैं? इसे मापने की प्रतिशत विधि उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: माँग की कीमत लोच किसी वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण उसकी माँगी गई मात्रा में होने वाले परिवर्तन का संख्यात्मक माप है। यह एक शुद्ध संख्या है जो इकाई मुक्त है इसका चिह्न ऋणात्मक होती है, जो माँगी गई मात्रा एवं वस्तु की कीमत के ऋणात्मक संबंध को दर्शाता है।
प्रतिशत विधि – प्रतिशत विधि के अनुसार माँग की कीमत लोच किसी वस्तु की अपनी कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप माँगी गई मात्रा में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन का माप है।
प्र० 28. माँग की कीमत लोच कितने प्रकार की होती है?
अथवा
किसी वस्तु की माँग को पूर्णतया बेलोचदार कब कहा जाता है? (All India 2013)
उत्तर: माँग की कीमत लोच पाँच प्रकार की होती है।
1. पूर्णतया बेलोचदार माँग (EDp = 0)
2. बेलोचदार माँग (EDp < 0) 3. इकाई के बराबर (EDp = 1) 4. लोचदार माँग (EDp > 1)
5. पूर्णतया लोचदार माँग (EDp = ∞)
1. पूर्णतया बेलोचदार माँग (EDp = 0) – जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग की गई मात्रा में कोई परिवर्तन न हो तो उसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहा जाता है। इसे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारा दिखाया गया है।
2. बेलोचदार माँग (EDp < 1) – जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन उसकी कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से कम हो, तो उसे बेलोचदार कहते हैं। इसे नीचे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारा दिखाया गया है।
3. इकाई के बराबर (EDp = 1) – जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग में प्रतिशत परिवर्तन उसकी कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के बिल्कुल बराबर हो, तो ये इकाई के बराबर लोचशील हो जाता है। इसे नीचे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारा दिखाया गया हैं इसका वक्र आयताकार अतिपरवलय (Rectanguler Hyperbola) होता है।
4. लोचदार माँग (EDp > 1) – जब वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग में प्रतिशत परिवर्तन उसकी कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से अधिक हो, तो इसे लोचदार माँग कहा जाता है। इसे नीचे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारी दर्शाया गया है।
5. पूर्णतया लोचदार माँग (EDp = 0) – जब वस्तु की कीमत में बिना परिवर्तन वस्तु की माँग की गई मात्रा में परिवर्तन होता है, तो उसे पूर्णतया लोचदार माँग कहा जाता है इसे नीचे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारा दिखाया गया है।
प्र० 29. माँग की कीमत लोच निम्नलिखित से कैसे प्रभावित होती है (Delhi 2013)
(i) प्रतिस्थापन वस्तुओं की संख्या से
(ii) वस्तु की प्रकृति से
अथवा
मांग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले किन्हीं दो कारणों की व्याख्या कीजिए। उपयुक्त उदाहरण दीजिए। (Delhi 2014)
उत्तर:
(i) प्रतिस्थापन वस्तुओं की संख्या से – निकटतम प्रतिस्थापन्न वस्तुओं की संख्या जितनी अधिक होती है माँग की कीमत लोच उतनी अधिक होती है। इसका कारण यह है कि जब किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है, तो उपभोक्ताओं के पास प्रतिस्थापन्न वस्तु को खरीदने का विकल्प होता है, अतः वह उन वस्तुओं पर स्थानान्तरित हो जाता है जिन वस्तुओं के निकटतम प्रतिस्थापन्न उपलब्ध नहीं होते, तो उसकी माँग सापेक्षतया कम लोचदार होती है जैसे रेलवे।
(ii) वस्तु की प्रकृति- जो वस्तुएँ अनिवार्य हैं जैसे नमक, मिट्टी का तेल, माचिस, पाठ्यपुस्तक, फल, सब्जियाँ आदि उनकी माँग कम लोचदार होती है। दूसरी ओर जो वस्तुएँ विलासिता की हैं जैसे कीमती गहने, इलैक्ट्रोनिक उपकरण आदि उनकी माँग सापेक्षतया अधिक लोचदार होती हैं इसका कारण यह है कि अनिवार्य वस्तुओं का उपभोग स्थगित नहीं किया जा सकता, जबकि विलासिता की वस्तुओं का उपभोग स्थगित किया जा सकता है।
प्र० 30. माँग की लोच ज्ञात करने की कुल व्यय विधि की व्याख्या करें।
उत्तर: प्रो. मार्शल ने माँग की कीमत लोच तथा कुल व्यय में संबंध प्रतिपादित किया जिसके अनुसार निम्नलिखित तीन स्थितियों का अवलोकन किया
(i) कीमत तथा कुल व्यय में धनात्मक सहसंबंध – जब कीमत बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ता है तथा कीमत कम होने पर कुल व्यय कम होता है, तो माँग की कीमत लोच सापेक्षतया बेलोचदार होती है।
(ii) कीमत तथा कुल व्यय में शून्य सहसंबंध – जब कीमत बढ़ने पर या कीमत कम होने पर कुल व्यय समान रहे तो माँग की कीमत लोच इकाई के बराबर होती है।
(iii) कीमत तथा कुल व्यय में ऋणात्मक सहसंबंध – जब कीमत कम होने पर कुल व्यय बढ़ जाता है तथा कीमत बढ़ने पर कुल व्यय कम हो जाता है, तो माँग की लोच सापेक्षतया लोचदर होती है। इसे नीचे दी गई तालिका तथा वक्र द्वारा दर्शाया गया है।
बिन्दु 0 से A तक EDp < 1 क्योंकि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय बढ़ता है। बिन्दु A से B तक EDp = 1 क्योंकि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय समान है। बिन्दु B से C तक, EDp > 1 क्योंकि कीमत घटने पर कुल व्यय कम होता जाता है।
III. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
प्र० 1. एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं x और y का उपभोग करता है। इनके उपभोग के स्तर पर उसे पता चलता है कि वस्तु x की सीमा उपयोगिता और कीमत का अनुपात वस्तु y की अपेक्षा कम है। उपभोक्ता की क्या प्रतिक्रिया होगी? समझाइए। (All India 2011)
अथवा
अपनी सारी आय केवल दो वस्तुओं x और y पर व्यय करने पर उपभोक्ता को पता चलता है कि (Foreign 2014)
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन में तब होता है जब
का घटना आवश्यक है। परन्तु x की कीमत की कीमत पर उपभोक्ता का कोई नियंत्रण नहीं है। अतः वह उपभोक्ता संतुलन को तब प्राप्त कर सकता है। जब x की सीमान्त उपयोगिता बढे। हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम के अनुसार जैसे-जैसे उपभोक्ता किसी वस्तु की उपभोग की जाने वाली मात्रा को बढ़ाता है वैसे-वैसे उससे प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता उसके लिए कम होती जाती है। अतः यदि वह सीमान्त उपयोगिता बढ़ाना चाहता है, तो उसे वस्तु x की उपभोग की जाने वाली मात्रा को कम करना होगा। अतः वह वस्तु x की मात्रा कम करेगा। इसे एक तालिका की सहायता से सहजता से समझा जा सकता है।
अतः उपभोक्ता संतुलन में है जब वह वस्तु x की 4 इकाइयों तथा वस्तु y की 5 इकाइयों का उपभोग कर रहा है। यह स्थिति दर्शाती है कि वस्तु x पर 1 १ खर्च करने से उपभोक्ता को उतनी ही सीमान्त उपयोगिता मिल
रही है, जितनी वस्तु y पर 1 ३ खर्च करने से मिलती है। परन्तु यदि तो इसका अर्थ है कि P, । वस्तु x पर 1 र खर्च करने से उपभोक्ता को वस्तु y की तुलना में कम सीमान्त उपयोगिता मिलती है। इसके अनुसार उपभोक्ता वस्तु x की तुलना में वस्तु y पर अधिक खर्च करेगा। जैसे-जैसे वस्तु y के उपभोग में वृद्धि होगी MVn बढ़ेगा तथा MVy कम होगा। अतः उपभोक्ता पुनः संतुलन की स्थिति प्राप्त कर लेगा।
प्र० 2. एक उपभोक्ता केवल दो वस्तुओं और y का उपभोग करता है। इनके उपभोग के स्तर पर उसे पता चलता है कि वस्तु की सीमान्त उपयोगिता और कीमत का अनुपात वस्तु y की अपेक्षा अधिक है। उपभोक्ता की क्या प्रतिक्रिया होगी?
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन में तब होता है जब
बाजार कीमत पर उपभोक्ता का कोई वश नहीं है अतः वह उपभोक्ता संतुलन प्राप्त कर सकता है यदि वस्तु x की सीमान्त उपयोगिता कम हो जाए। हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम के अनुसार वस्तु x की सीमान्त उपयोगिता तब कम होगी जब वह वस्तु ४ की उपभोग की जाने वाली मात्रा को बढ़ायेगा। इस स्थिति में वस्तु x पर 1 ३ खर्च करने से उपभोक्ता को वस्तु 3 की तुलना में अधिक सीमान्त उपयोगिता मिलती है। इसके अनुसार उपभोक्ता y की तुलना में x पर अधिक खर्च करेगा। जैसे-जैसे ॐ के उपभोग में वृद्धि होगी, MUx कम हो जायेगा। दूसरी ओर, जैसे-जैसे 9 के स्थान पर वस्तु ४ का अधिक खरीदना तब रोक देगा जब
अतः उपभोक्ता संतुलन में है जब वह वस्तु x की 4 इकाइयों तथा वस्तु x की 3 तथा वस्तु y की 5 इकाई खरीद रहा है।
प्र० 3. उपयोगिता विश्लेषण का प्रयोग करते हुए एक वस्तु की स्थिति तथा दो वस्तु की स्थिति में उपभोक्ता संतुलन की शर्तों की तुलना करें तथा वक्र द्वारा दोनों को दर्शाएँ।
उत्तर: एक वस्तु की स्थिति में, उपभोक्ता तब संतुलन में होता है
(i) जब प्राप्त 1 मूल्य के बराबर की सीमान्त उपयोगिता उपभोक्ता के द्वारा निर्दिष्ट मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता
के बराबर होती है। अतः
प्र० 4. अनाधिमान वक्रों की तीन विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। (Delhi 2011, All India 2013)
अथवा
अनाधिमान वक्रों की कोई तीन विशेषताएँ समझाइएँ। (All India 2011, Foreign 2011)
अथवा
समझाइए क्यों एक अनाधिमान वक्र (अ) नीचे की ओर ढलवा; और (ख) उत्तल होता है? (All India 2011, Foreign 2014)
उत्तर: अनाधिमान वक्र की 3 विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1. अनाधिमान वक्र नीचे की ओर ढलान वाला होता है – उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान अनाधिमान वक्र विश्लेषण की, आधारभूत | मान्यता है। इसका अर्थ है कि उपभोक्ता अधिमान इस प्रकार का होता 51 है कि किसी वस्तु का अधिक उपभोग सदैव उसे संतुष्टि का उच्च > स्तर प्रदान करता है। इसका निहितार्थ है कि उपभोक्ता को कभी भी हू 3वस्तु की अधिक मात्रा की पूर्ति नहीं की जाती है। अथवा वह कभी भी ऋणात्मक सीमांत उपयोगिता की स्थिति में नहीं होता है।
A पर संतुष्टि स्तर = B पर संतुष्टि स्तर
A तथा B के बीच में, जब वस्तु x का उपभोग बढ़ता है तो वस्तु X वस्तु y का उपभोग अवश्य कम होना चाहिए।
चूंकि IC पर स्थित दो वस्तुओं का उपभोग ऋणात्मक रूप से या विपरीत रूप से संबंधित है, IC का ढलान नीचे की ओर होता है।
2. अनाधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है – कोई भी वक्र उन्नतोदर तब होता है, जब उसकी ढलान घट रही हो। जैसे-जैसे हम अनाधिमान वक्र पर नीचे की ओर जाते हैं हमें ज्ञात होता है कि । इसका ढलान घटता है। इसका निहितार्थ है कि सीमांत प्रतिस्थापन्न की > दर से गिरने की प्रवृत्ति होती है, जिसके कारण अनाधिमान वक्र मूल बिंदु की ओर उन्नतोदर होता है।
चित्र से यह स्पष्ट है कि लगातार कम हो रहा है।
A और B के बीच की दूरी > B और C के बीच की दूरी > C और D के बीच की दूरी।
इसका कारण यह है कि जब उपभोक्ता वस्तु ४ की अधिक से अधिक इकाइयाँ प्राप्त करता है तो उसकी वस्तु ४ को प्राप्त करने की प्रबलता की इच्छा में कमी आ जाती है। इसका मूल कारण वस्तु x की सीमान्त उपयोगिता में गिरने की प्रवृत्ति होती है, जो हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम के अनुसार होता है। दूसरी ओर, जैसे-जैसे वस्तु की अधिक से अधिक मात्रा को त्यागा जाता है, तो उसकी वस्तु १ को प्राप्त करने की इच्छा भी प्रबलता बढ़ती जाती है। इसका अर्थ है कि वस्तु y की प्रत्येक अतिरिक्त इकाई का त्याग करने से उसकी सीमान्त उपयोगिता में वृद्धि होती है। अतः वह वस्तु की प्रत्येक अगली इकाई के लिए वस्तु की कम से कम मात्रा देने का इच्छुक होता है तदनुसार जैसे-जैसे हम तटस्थता वक्र पर नीचे की ओर जाते हैं (x की प्रत्येक इकाई के लिए y का त्याग) कम होने लगता है घटते हुए के कारण अनाधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है।
3. उच्च अनाधिमान वक्र संतुष्टता के उच्च स्तर को प्रकट करता है एक उच्च अनाधिमान वक्र पर y समान रहते x अधिक होता है (बिन्दु A से B) या x समान रहते y अधिक होता है (बिन्दु A से C) या दोनों x और y पहले से अधिक होते हैं (बिन्दु A से D) उपभोक्ता के एकदिष्ट अधिमान के अनुसार अधिक वस्तु उपभोक्ता को कम वस्तु की तुलना में अधिक संतुष्टता देती हैं इसे चित्र द्वारा दिखाया गया है।
प्र० 5. संख्यात्मक उदाहरणों की सहायता से
(i) सीमान्त प्रतिस्थापन दर और
(ii) बजट रेखा के समीकरण की अवधारणा समझाइए। (All India 2011)
उत्तर: सीमान्त प्रतिस्थापन दर-सीमान्त प्रतिस्थापन दर तटस्थता वक्र के ढलान के समान हैं यह वस्तु की उस मात्रा को प्रकट करती है, जो उपभोक्ता वस्तु x की एक अधिक इकाई के लिए त्याग करने को इच्छुक होता है। सीमान्त प्रतिस्थापन दर = इसे एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है।
वस्तु x की पहली इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 5 इकाईयाँ त्यागने को तैयार है। वस्तु x की दूसरी इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 4 इकाइयाँ त्यागने को तैयार है वस्तु * की तीसरी इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 3 इकाइयाँ छोड़ने को तैयार है। वस्तु x की चौथी इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु । की 2 इकाइयाँ त्यागने को तैयार है। वस्तु ॐ की पाँचवीं इकाई पाने के लिए उपभोक्ता वस्तु y की 1 इकाई त्यागने को तैयार है। सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर (MRSxy) लगातार कम हो रही है इसीलिए तटस्थता वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है यह कम इसीलिए होती है, क्योंकि हासमान सीमान्त उपयोगिता का नियम कार्यशील है। जो वस्तु उपभोक्ता के पास अधिक होती हैं उसकी सीमान्त उपयोगिता उसके लिए कम होती है। बजट रेखा का समीकरण-यदि किसी वस्तु = की कीमत P0 है और उपभोक्ता उसकी 5 इकाइयाँ लेता है तो वस्तु x पर कुल व्यय १ 50 होगा (10 x 5) अर्थात Pn x Qn, इसी प्रकार यदि वस्तु » की कीमत १ 5 है और उपभोक्ता उसकी 6 इकाइयाँ लेता है, तो वस्तु y पर कुल व्यय १ 30 होगा (5 x 6) अर्थात Py x Q तटस्थता वक्र विश्लेषण में बजट रेखा अवधारणा के अनुसार दोनों वस्तु पर व्यय आय के समान या उससे कम होना चाहिए। अतः बजट रेखा समीकरण Px Qx + Py Qy < y
मान लो
Pn = 22, Py = 5, y = 100
तो बजट रेखा समीकरण 2Qn + 5Qy < 100।
प्र० 6. समझाइए कि अनाधिमान वक्र क्यों बाएँ से दाएँ नीचे की ओर ढलवाँ होता है। अनाधिमान वक्र विश्लेषण की सहायता से उपभोक्ता संतुलन की शर्ते बताइए। (Foreign 2012, All India 2014)
उत्तर: अनाधिमाने वक्र के बाएँ से दाएँ नीचे की ओर ढलवा होने का कारण उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान की मान्यता है। उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान का अर्थ है कि एक उपभोक्ता एक वस्तु की सदैव अधिक मात्रा को कम मात्रा से अधिक पसन्द करता हैं अतः वह संयोजन (10, 8) से अधिक (10, 9) को प्राथमिकता देगा। इससे सिद्ध है कि उपयोगिता चित्र
(i) में A और B में अनाधिमान नहीं हो सकता, वह B को A से अधिक पसंद करेगा। इसी प्रकार चित्र
(ii) में वह B को A से अधिक पसंद करेगा चित्र
(iii) में भी वह B को A से अधिक पसंद करेगा, क्योंकि बिन्दु B पर चित्र
(i) में x समान तथा 9 बिन्दु A की तुलना में अधिक है, चित्र
(ii) में x समान तथा ४ बिन्दु A की तुलना में अधिक है, चित्र
(iii) में x और 9 दोनों बिन्दु A की तुलना में बिन्दु B पर अधिक हैं। अतः वह चित्र
(iv) में A और B में तटस्थ हो सकता है, क्योंकि बिन्दु A की तुलना में बिन्दु B पर x अधिक है तो y पहले से कम है।
इसीलिए जब वस्तु = और वस्तु » दोनों की सीमान्त उपयोगिता धनात्मक हो अर्थात् उपभोक्ता को एकदिष्ट अधिमान हो तो अनाधिमान वक्र बाएं से दाएं नीचे की ओर ढलवां होता है। उपभोक्ता संतुलन से अभिप्राय उपभोक्ता के इष्टतम चयन से हैं यह तब प्राप्त होता है जब उपभोक्ता अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करता है। तटस्थता वक्र विश्लेषण द्वारा उपभोक्ता अथवा संतुलन तब प्राप्त करता है जब
प्र० 7. बजट सेट क्या है? बजट सेट में परिवर्तन कब आ सकता है? समझाइए। (All India 2012)
उत्तर: बजट सेट से अभिप्राय दो वस्तुओं के प्राप्य संयोगों के एक समूह से है जब वस्तुओं की कीमतें तथा उपभोक्ता की आय दी हुई हो।
बजट रेखा समीकरण Pn Qn + Py Qy < y
अतः बजट सेट में तीन कारणों से परिवर्तन आ सकता है
(i) Pn में परिवर्तन
(ii) Py में परिवर्तन
(iii) y में परिवर्तन
(i) Pमें परिवर्तन – वस्तु की कीमत में परिवर्तन आने से बजट सेट में परिवर्तन आ सकता है। वस्तु x की कीमत बढ़ने पर उपभोक्ता वस्तु y को पहले से कम मात्रा खरीद पायेगा। वस्तु x की कीमत कम होने पर उपभोक्ता वस्तु x की पहले से अधिक मात्रा खरीद पायेगा।
(ii) Py में परिवर्तन – वस्तु y की कीमत में परिवर्तन आने से उपभोक्ता के बजट सेट में परिवर्तन आ सकता हैं वस्तु y की कीमत बढ़ने पर उपभोक्ता वस्तु y की मात्रा पहले से कम खरीद पायेगा वस्तु y की कीमत कम होने पर उपभोक्ता वस्तु की मात्रा पहले से अधिक खरीद पायेगा।
(iii) आय में परिवर्तन – आय में परिवर्तन से भी उपभोक्ता के बजट सेट में परिवर्तन आ सकता है। आय बढ़ने पर उपभोक्ता दोनों वस्तुएँ पहले से अधिक खरीद सकता है। अतः बजट रेखा BC दाँई ओर समानांतर खिसक जायेगी। आय कम होने पर बजेट रेखा बाँई ओर समानांतर खिसक जायेगी।
प्र० 8. माँग की परिभाषा दीजिए। माँग को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर: सामान्यतया माँग और इच्छा को एक आम आदमी एक ही अर्थ में लेता है, परन्तु हर इच्छा माँग नहीं होती। किसी वस्तु की माँग वस्तु को खरीदने की वह इच्छा है, जिसके लिए उसके पास पर्याप्त क्रय शक्ति है और खर्च करने की तत्परता है।
माँग की परिभाषा में तीन तत्व समाहित हैं – इच्छा, क्रय शक्ति तथा खर्च करने की तत्परता। अन्य शब्दों में माँग किसी वस्तु की वह मात्रा है जो उपभोक्ता एक निश्चित कीमत पर निश्चित समयावधि के लिए खरीदने को तैयार होता है।
माँग को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं
(i) वस्तु की अपनी कीमत (ऋणात्मक) – वस्तु की अपनी कीमत बढ़ने से वस्तु की माँगी गई मात्रा कम हो जाती है तथा वस्तु की अपनी कीमत कम होने से वस्तु की माँगी गई मात्रा बढ़ जाती है यदि अन्य बातें समान
(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन – संबंधित वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं।
(क) प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ (धनात्मक) – जो वस्तुएँ एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग की जा सकती हैं, वे प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ कहलाती हैं। प्रतिस्थापन्न वस्तुओं जैसे-अमूल दूध तथा मदर डेयरी दूध में यदि अमूल दूध की कीमत बढ़ जाए तो मदर डेयरी के दूध की माँग बढ़ जायेगी, क्योंकि अमूल दूध के उपभोक्ता भी मदर डेयरी की ओर आकर्षित होंगे तथा विपरीत।।
(ख) पूरक वस्तुएँ (ऋणात्मक) – जो वस्तुएँ एक साथ उपयोग की जाती हैं पूरक वस्तुएँ कहलाती हैं। पूरक पूरक वस्तु की कीमत में कमी वस्तुओं जैसे कार और ईंधन में यदि ईंधन की कीमत बढ़ेगी तो कार की माँग कम हो जायेगी, क्योंकि । पूरक वस्तु की हैं कीमत में वृद्धि उपभोक्ता कार की माँग बिना ईंधन के नहीं कर सकता। कीमत में वृद्धि तथा विपरीत।
(iii) उपभोक्ता की आय – किसी वस्तु की माँग पर आय में परिवर्तन का क्या प्रभाव पड़ेगा वह इस पर निर्भर करता है कि वह सामान्य वस्तु है या निम्नकोटि वस्तु है।
(क) सामान्य वस्तु ( धनात्मक) सामान्य वस्तु की स्थिति में आय बढ़ने पर वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तथा आय कम होने पर वस्तु की माँग में कमी होती है।
(ख) निम्नकोटि वस्तु (ऋणात्मक)-निम्नकोटि वस्तु की स्थिति में आय कम होने पर वस्तु की माँग में वृद्धि होती है तथा आय बढ़ने पर वस्तु की माँग में कमी होती है।
(iv) उपभोक्ता की रूचि और प्राथमिकता में परिवर्तन (धनात्मक) – जब उपभोक्ता की रूचि और प्राथमिकता में अनुकूल परिवर्तन आता है तो माँग में वृद्धि होती है और जब, उपभोक्ता की रूचि और प्राथमिकता में प्रतिकूल परिवर्तन आता है तो माँग में कमी होती है।
प्र० 9. माँग फलन क्या है? ऐसे दो कारकों की व्याख्या करें जो केवल बाजार माँग को प्रभावित करते हैं?
उत्तर: माँग फलन किसी वस्तु की माँग तथा उसके विभिन्न निर्धारक तत्वों के बीच संबंध प्रकट करता है। इससे स्पष्ट होता है कि वस्तु की माँग उस वस्तु की अपनी कीमत, संबंधित वस्तुओं की कीमत, रूचि तथा प्राथमिकता आदि से किस प्रकार संबंधित है।
बाजार माँग को प्रभावित करने वाले दो कारक निम्नलिखित हैं:
(क) जनसंख्या का आकार–किसी वस्तु को खरीदने वाले उपभोक्ताओं की जनसंख्या जितनी अधिक होगी वस्तु की बाजार माँग उतनी अधिक होगी तथा किसी वस्तु को खरीदने वाले उपभोक्ताओं की जनसंख्या जितनी कम होगी बाजार माँग उतनी कम होगी। उदाहरण के लिए भारत जैसे देश में शिशु उत्पादों की माँग अधिक होगी।
(ख) आय का वितरण – यदि आय समान रूप से वितरित है तो आवश्यकताओं की माँग अधिक होगी औ विलासिती वस्तुओं की मांग कम होगी। यदि आय असमान रूप से वितरित है, तो विलासिता वस्तुओं की माँग अधिक होगी तथा निर्धन लोग निम्नकोटि वस्तुओं की माँग करेंगे।
प्र० 10. ‘माँग में परिवर्तन’ और माँग मात्रा में परिवर्तन’ में अन्तर कीजिए। (Foreign 2012)
उत्तर :
प्र० 11. माँग की कीमत लोच मापने की ज्यामितीय विधि समझाइए।
उत्तर: माँग वक्र के किसी भी बिन्दु पर ज्यामितीय विधि से माँग की कीमत लोच ज्ञात की जा सकती है।
(घ) A तथा D के मध्य किसी भी बिन्दु पर मात्रा की कीमत लोच इकाई से अधिक है, क्योंकि इस बीच में हर बिंदु पर माना वक्र का निचला हिस्सा, माँग वक्र के ऊपरी हिस्से से बड़ा है।
(ङ) A तथा d के मध्य किसी भी बिन्दु पर माँग की कीमत लोच इकाई से कम है, क्योंकि इस बीच हर बिन्दु पर, माँग वक्र का निचला हिस्सा, माँग वक्र के ऊपरी हिस्से से छोटा है।
प्र० 12. माँग के दाँई तथा बाँई ओर खिसकने के तीन कारण बताइये।
उत्तर: माँग के दाँई ओर खिसकने के कारण-माँग दाईं ओर तब खिसकती है।
जब क्स्तु की माँग में वृद्धि होती है। इसके कारण
(i) आय में वृद्धि (सामान्य वस्तु की स्थिति में) तथा आय में कमी मांग में वृद्धि | (निम्न कोटि वस्तु की स्थिति में)
(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमत में वृद्धि तथा पूरक वस्तुओं की कीमतों में कमी
(iii) रूचि और प्राथमिकता में अनुकूल परिवर्तन
माँग के बाईं ओर खिसकने के कारण-माँग बाईं ओर तब खिसकती है।
जब वस्तु की माँग में कमी होती है। इसके कारण हैं-
(i) आय में कमी-(सामान्य वस्तु की स्थिति में) तथा आय में वृद्धि (निम्नकोटि वस्तु की स्थिति में)
(ii) संबंधित वस्तुओं की कीमत में परिवर्तन-प्रतिस्थापन्न वस्तु की मांग में कमी कीमत में कमी तथा पूरक वस्तुओं की कीमत में वृद्धि।
(iii) रूचि और प्राथमिकता में प्रतिकूल परिवर्तन
प्र० 13. माँग की लोच को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या करो। (Delhi 2004, 09, 10 C)
उत्तर: माँग की लोच को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(क) वस्तु की प्रकृति – मांग की लोच वस्तु की प्रकृति पर निर्भर करती है। यदि एक वस्तु अनिवार्य वस्तु है तो उसकी माँग बेलोचदार होती है, क्योंकि उन्हें खरीदना जरूरी होता है। तथा उनका उपयोग बंद नहीं किया जा सकता। आरामदायक वस्तुओं की माँग और भी अधिक लोचदार होती है।
(ख) प्रतिस्थापन्न वस्तुओं की उपलब्धता – जिस वस्तु की बहुत सी प्रतिस्थापन्न वस्तुएँ उपलब्ध होती है क्योंकि उपभोक्ता के पास विकल्प उपलब्ध होते हैं तथा वह वस्तु की कीमत बढ़ने पर वह उन विकल्पों को चुन सकता है जैसे साबुन टूथपेस्ट आदि। परन्तु जिस वस्तु की प्रतिस्थापन वस्तुएं उपलब्ध नहीं होती उनकी माँग कम लोचदार होती है, क्योंकि उपभोक्ता के पास कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होते जैसे भारतीय रेलवे।
(ग) वस्तु पर व्यय का आय में भाग–जिस वस्तु पर आय का एक बड़ा भाग व्यय किया जाता है उस वस्तु की मांग लोचदार होती है जैसे दूध, पेट्रोल, किराया आदि। जिस वस्तु पर आय का एक छोटा भाग व्यय | किया जाता है उस वस्तु की माँग बेलोचदार होती है जेसे बसकुआ, स्टेपलर पिन आदि।
(घ) वस्तु के विभिन्न प्रयोग–जिस वस्तु के बहुत या विभिन्न कार्यों में प्रयोग किया जाता है उसकी माँग सापेक्षतया लोचदार होती है जैसे बिजली दूध आदि, परन्तु जिस वस्तु के कम प्रयोग होते हैं उसकी माँग | सापेक्षतया बेलोचदार होती है जैसे नमक, दियासिलाई आदि।
(ङ) उपभोक्ता की आय का स्तर–बहुत अधिक आय वाले लोगों की माँग आय बेलोचदार होती है, क्योंकि कीमत बढ़ने या घटने का ऐसे लोगों की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके विपरीत मध्ये वर्ग या निम्न वर्ग द्वारा खरीदी जानेवाली वस्तुओं की माँग सापेक्षतया लोचदार होता है।
(च) स्थगन की संभावना-जिन वस्तुओं का उपभोग या क्रय भविष्य के लिए स्थगित किया जा सकता है उनकी माँग सापेक्षतया लोचदार होती है। जिन वस्तुओं का उपभोग यी क्रय भविष्य के लिए स्थगित करना संभव नहीं है उनकी माँग सापेक्षतया बेलोचदार होती है।
(छ) वस्तु की कीमत का स्तर–बहुत अधिक कीमत वाली वस्तुओं जैसे हीरा, प्लैटिनम आदि या बहुत कम कीमत वाली वस्तुओं जैसे सुई, दियासिलाई आदि की माँग बेलोचदार होती है। सामान्य कीमत वाली वस्तुओं की माँग जैसे: दो पहिया गाड़ी, वस्त्र आदि की माँग लोचदार होती है।
(ज) समय अवधि – सामान्यतः दीर्घ काल में किसी वस्तु की माँग अधिक लोचदार होती है, जबकि अल्पकाल में कम लोचदार होती है, क्योंकि दीर्घकाल में वस्तु के विकल्प ढूँढ़ना तुलनात्मक रूप से आसान होता है।
प्र० 14. माँग की लोच के महत्व की व्याख्या करो
अथवा
माँग की लोच का विभिन्न क्षेत्रों का निर्णय लेने में क्या महत्व है? स्पष्ट करें।
उत्तर: माँग की लोच का महत्व अर्थशास्त्र के हर उस क्षेत्र में है, जहाँ माँग की अवधारणा प्रयोग होती है और पूरी अर्थव्यवस्था में मुख्य निर्णय कीमत तंत्र की सहायता से ही लिये जाते हैं।
1. एकाधिकारी के लिए महत्व – एकाधिकारी का पूर्ति पर पूर्ण अधिकार रहता है पर माँग उपभोक्ता पर । निर्भर करती है। यदि माँग बेलोचदार है तो एकाधिकारी अपनी वस्तु की कीमत बढ़ाकर लाभ को बढ़ा सकता है, परन्तु यदि माँग लोचदार है तो एकाधिकारी कीमत थोड़ा कम करके तथा परिणामस्वरूप वस्तु की अधिक मात्रा बेचकर अपनी लाभ अधिकतम कर सकता है।
2. सरकार की नीति बनाने के लिए महत्व – सरकार अपना बजट बनाते समय ‘करनीति’ का निर्धारण करने के लिए विशेष रूप से माँग की लोच को देखती है। यदि वस्तु की माँग लोचदार है तो कर लगाने पर सरकार की कर आय कम होगी, क्योंकि वस्तु की मात्रा कम हो जायेगी। यदि वस्तु की माँग बेलोचदार है तो कर लगाने पर सरकार की आय बढ़ेगी, अत: लोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कर कम तथा बेलोचदार माँग वाली वस्तुओं पर कर अधिक लगाया जाना चाहिए।
3. कीमत निर्धारण में महत्व – बेलोचदार माँगवाली वस्तुओं की कीमत अधिक ली जा सकती है परन्तु लोचदार माँग वाली वस्तुओं की कीमत कम होनी चाहिए।
4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में महत्व – अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की शर्ते माँग की कीमत-लोच पर निर्भर करती हैं यदि भारतीय वस्तुओं की माँग की लोच अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कम है तो हम उनकी अधिक कीमत वसूल कर सकते है। परन्तु
यदि हमारी वस्तुओं की माँग की लोच अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक है तो हम कम कीमत ले सकते हैं।
IV. संख्यात्मक हल प्रश्न (Solved Numerical Questions)
प्र० 1. नीचे दी गई तालिका से सीमान्त उपयोगिता ज्ञात करो।
उत्तर:
प्र० 2. नीचे दी गई तालिका से कुल उपयोगिता का आकलन करो।
उत्तर:
प्र० 3. नीचे दी गई तालिका में रिक्त स्थान भरें।
उत्तर:
प्र० 4. चॉकलेट की कीमत 20 है। संजू जो चॉकलेट की बहुत शौकीन है वह 4 चॉकलेट खा चुकी है। उसके लिए। 1 १ की सीमान्त उपयोगिता 4 है। क्या उसे और चॉकलेट खानी चाहिए या नहीं?
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन में होता है जब
यदि चौथी चॉकलेट का उपभोग करने पर उसे अतिरिक्त उपयोगिता 80 यूटिल मिल रही है, तो उसे और चॉकलेट नहीं खानी चाहिए। यदि चौथी चॉकलेट से सीमान्त उपयोगिता 80 यूटिल से कम है, तो उसे और चॉकलेट खानी
चाहिए जब तक MUn = 80 न हो जाये।
प्र० 5. संजु के पास 100 २ है। वह इनसे वस्तु और वस्तु y खरीदना चाहती है। वस्तु x और वस्तु y की बाजार कीमत 5 प्रति इकाई तथा १ 10 प्रति इकाई क्रमशः है। वस्तु x और वस्तु y की सीमान्त उपयोगिता की अनुसूची नीचे दी गई हैं ज्ञात करें कि उपभोक्ता संतुलन प्राप्त करने के लिए संजू को वस्तु x और वस्तु y की कितनी इकाइयाँ खरीदनी चाहिए जिससे उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो।
उत्तर:
प्र० 6. यदि उपभोक्ता के अधिमान एकदिष्ट है तब क्या 10, 4 और 8, 4 संयोगों में तटस्थ हो सकता है?
उत्तर: नहीं वह 10, 4 संयोग को 8, 2 संयोग से अधिक प्राथमिकता देगा।
प्र० 7. एक उपभोक्ता का बजट १ 80 है। वह वस्तु 1 और वस्तु 2 खरीद रहा है। वस्तु x की कीमत १ 8 प्रति इकाई और वस्तु 4 की कीमत के 10 प्रति इकाई हैं इन अंकों के आधार पर बजट रेखा खींचिए।
उत्तर:
प्र० 8. एक उपभोक्ता का बजट १ 100 है। वह वस्तु 1 तथा वस्तु 2 खरीद रहा है। वस्तु 1 की कीमत १4 तथा वस्तु 2 की कीमत के 5 प्रति इकाई है। निम्नलिखित ज्ञात करें।
(i) बजट रेखा समीकरण
(ii) बजट रेखा की ढलान
(iii) संतुलन बिन्दु पर सीमान्त प्रतिस्थापन्न दर
(iv) पूर्ण आय x पर करने पर की मात्रा
(v) पूर्ण आय } पर खर्च करने पर y की मात्रा
(vi) दो अप्राप्य संयोग
उत्तर:
प्रतिशत विधि
प्र० 9. किसी वस्तु की कीमत में 8 प्रतिशत कमी के कारण इसकी माँगी गई मात्रा 6% कम हो गई। इसकी माँग की कीमत लोच क्या है?
उत्तर:
प्र० 10. एक उपभोक्ता १ 5 प्रति इकाई पर वस्तु की 40 इकाइयाँ खरीदता है। उसकी कीमत लोच (-)/.5 है। बताइये कि | वह १ 4 प्रति इकाई पर कितनी मात्रा खरीदेगा?
उत्तर:
प्र० 11. एक वस्तु की कीमत 10% गिर जाने से इसकी माँग 100 इकाइयों से बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात करो।
उत्तर:
प्र० 12. दो वस्तुएँ x और 9 की कीमत लोचे समान है। वस्तु की कीमत 5% गिरने पर उसकी माँग की गई मात्रा 10% बढ़ जाती है। यदि वस्तु 9 की कीमत 20% बढ़े तो उसकी माँग की गई मात्रा में कितना परिवर्तन होगा?
उत्तर:
प्र० 13, एक वस्तु की कीमत 10 र प्रति इकाई होने पर एक उपभोक्ता उस वस्तु की 20 इकाइयाँ खरीदता है। कीमत 10% गिरने पर माँग बढ़कर 22 हो जाती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्र० 14. एक वस्तु की कीमत 10% गिर जाने से इसकी माँग 100 इकाइयों से बढ़कर 120 इकाइयाँ हो जाती है। माँग की लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्र० 15. एक वस्तु की 20 १ प्रति इकाई कीमत पर वस्तु की माँग 300 इकाइयाँ हैं। यदि कीमत 10% गिर जाए तो माँग 60 इकाइयाँ बढ़ जाती हैं। इसकी कीमत लोच ज्ञात कीजिए। (All India 2013)
उत्तर:
प्र० 16. एक वस्तु की कीमत के 15 प्रति इकाई से घटकर १ 12 प्रति इकाई हो जाती है, तो इसकी माँग में 25 प्रतिशत की वृद्धि होती है। माँग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्र० 17, जब एक वस्तु की कीमत 2 र प्रति इकाई घटती है तो उसकी माँग-मात्रा 10 इकाई बढ़ जाती है। इसकी मांग की कीमत लोच (-1) है। परिवर्तन से पूर्व इसकी कीमत 10 र प्रति इकाई पर इसकी माँग-मात्रा का परिकलन कीजिए। (Delhi 2010)
उत्तर:
प्र० 18. 7 प्रति इकाई पर एक उपभोक्ता वस्तु की 12 इकाई खरीदता है। जब कीमत १ 6 प्रति इकाई हो जाती है वह उस वस्तु पर १ 72 व्यय करता है। प्रतिशत विधि द्वारा कीमत मांग लोच ज्ञात कीजिए। माँग लोच के आधार पर माँग वक्र के संभावित आकार पर टिप्पणी कीजिए। (Delhi 2012)
उत्तर:
प्र० 19. एक उपभोक्ता के 10 प्रति इकाई की कीमत पर एक वस्तु की 10 इकाइयाँ खरीदता है। 20 इकाइयां खरीदने पर वह ३ 200 खर्च करता है। प्रतिशत विधि द्वारा मांग की कीमत लोच ज्ञात कीजिए। इस सूचना के आधार पर माँग वक्र के आकार पर टिप्पणी कीजिए। (All India 2012)
उत्तर:
कुल व्यय विधि
प्र० 20. नीचे दी गई सारणी में विभिन्न कीमतों पर कुल व्यय विधि से माँग की कीमत लोच ज्ञात करो।
उत्तर:
प्र० 21. किसी वस्तु की कीमत में 10% कमी के कारण उस पर कुल खर्च में 5% वृद्धि हो गई। इस वस्तु पर माँग की लोच के बारे में आप क्या कहेंगे?
उत्तर: कीमत में कमी होने पर कुल व्यय में वृद्धि हो तो माँग की कीमत लोच इकाई से अधिक होगी।
प्र० 22. एक वस्तु की माँग लोचदार है। इसकी कीमत गिर जाती है। वस्तु पर किये गये कुल व्यय पर क्या प्रभाव पड़ेगा? एक संख्यात्मक उदाहरण दीजिए।
उत्तर: यदि वस्तु की माँग लोचदार है और इसकी कीमत गिर जाती है तो कुल व्यय विपरीत दिशा में बढ़ेगा अर्थात् गिरने पर कुल व्यय बढ़ेगा तथा विपरीत।
प्र० 23. एक वस्तु की माँग की कीमत लोच (-)1 है। जब वस्तु की कीमत र 2 प्रति इकाई है तो उपभोक्ता उस वस्तु की 50 इकाइयाँ खरीदता है। यदि कीमत बढ़कर 34 प्रति इकाई हो जाये, तो उपभोक्ता कितनी इकाइयाँ खरीदेगा?
इसका उत्तर माँग की कीमत लोच मापने की कुल व्यय विधि की सहायता से दीजिए।
उत्तर:
प्र० 24. 7 प्रति इकाई कीमत पर एक वस्तु की माँग 8 इकाई है। उसकी माँग की कीमत लोच (-)1 है। वस्तु की कीमत बढ़कर 8१ प्रति इकाई हो जाने पर उसकी मांग कितनी होगी? इस प्रश्न का उत्तर मांग की कीमत लोच की
व्यय विधि के आधार पर दीजिए।
उत्तर:
प्र० 25. एक वस्तु की माँग की कीमत लोच – 0.4 है। यदि इसकी कीमत 5 प्रतिशत बढ़े तो इसकी माँग कितने प्रतिशत घटेगी? परिकलन कीजिए।
अथवा
माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले किन्हीं दो कारकों की व्याख्या कीजिए। उपयुक्त उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
प्र०26. एक वस्तु की कीमत माँग लोच (-) है। जब इसकी प्रति इकाई कीमत एक रुपया गिरती है, तो इसकी माँग 16
इकाई से बढ़कर 18 इकाई हो जाती है। परिवर्तन से पूर्व की कीमत का परिकलन कीजिए।
उत्तर:
प्र० 27. जब एक वस्तु की कीमत र 10 से घट कर १ 8 प्रति इकाई हो जाती है, तो इसकी माँग 20 इकाई से बढ़ कर 24 इकाई हो जाती है। इस वस्तु की माँग की कीमत लोच के बारे में ‘व्यय विधि’ द्वारा आप क्या कह सकते हैं? उत्तर: माँग की कीमत लोच-व्यय विधि द्वारा
(i) यदि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय में वृद्धि हो और कीमत कम होने पर कुल व्यय में कमी हो तो EDp < 1. (ii) यदि कीमत बढ़ने पर कुल व्यय में कमी हो और कीमत कम होने पर कुल व्यय में वृद्धि हो तो EDp > 1.
V. उच्च स्तरीय चिंतन कौशल प्रश्न (HOTS Questions)
प्र० 1. जब कुल उपयोगिता घटती है तो सीमान्त उपयोगिता घटती है। सही या गलत? व्याख्या करें।
उत्तर: जब कुल उपयोगिता बढ़ती है तब भी सीमान्त उपयोगिता घटती है यदि कुल उपयोगिता घटती दर से बढ़ रही है। जब कुल उपयोगिता घटती है तो सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक हो जाती है। इसे चित्र द्वारा दिखाया गया है।
चित्र में यह स्पष्ट है कि MU लगातार घट रहा है, जबकि जब TU घटने लगता है तो MU ऋणात्मक हो जाता है।
प्र० 2. जब सीमान्त उपयोगिता घट रही है तो कुल उपयोगिता कैसी होगी?
उत्तर: जब सीमान्त उपयोगिता घट रही है परन्तु धनात्मक है तो कुल उपयोगिता घटती दर पर बढ़ती है। इसे नीचे दिए चित्र में दिखाया गया है। बिन्दु A तक सीमान्त उपयोगिता घट रही है, परन्तु धनात्मक है तो कुल उपयोगिता घटते दर बढ़ रही है, परन्तु जब सीमान्त उपयोगिता घटते-घटते ऋणात्मक हो जाती है तो कुल उपयोगिता घटने लगती है।
प्र० 3. मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता क्या है?
उत्तर: मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता से अभिप्राय उपभोक्ता के लिए 1 १ के बराबर के मूल्य’ से है। इसे स्थिर माना
जाता है क्योंकि यह 1 १ मूल्य के बराबर की संतुष्टि का एक मापदण्ड है। यदि दूरी को किलोमीटर में मापना है तो किलोमीटर का स्थिर होना अति आवश्यक है। उपयोगिता को मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता के आधार पर
ही मापा जाता है। अतः मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता का स्थिर रहना अति आवश्यक है।
प्र० 4. एक उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में एक वस्तु के लिए कौन सी कीमत देने को तैयार होता है?
उत्तरः एक उपभोक्ता संतुलन की स्थिति में एक वस्तु की वह कीमत देने को तैयार होता है जिसमें MUx/MUm = Px इस कीमत पर वह न लाभ में होता है न ही हानि में होता है।
प्र० 5. शर्तों को मान्यताएँ नहीं समझ लेना चाहिए। व्याख्या कीजिए।
उत्तर: उपभोक्ता संतुलन की शर्तों को मान्यता नहीं समझ लेना चाहिए। उपभोक्ता संतुलन की शर्त है कि
(ii) MUn तथा MUy बढ़ती मात्रा के साथ घट रहे हों।
परन्तु उपभोक्ता संतुलन की मान्यताएँ इस प्रकार हैं।
(i) उपयोगिता को संख्यात्मक रूप से प्रकट किया जा सकता है।
(ii) मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता स्थिर रहती है।
(iii) हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम लागू होता है।
(iv) उपभोक्ता विवेकशील है।
(v) वस्तु की कीमत तथा मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता ज्ञात है तथा स्थिर है।
प्र० 6. उपभोक्ता संतुलन कैसे प्रभावित होगा यदि Pn स्थिर रहे तथा MUm में वृद्धि हो?
उत्तर:
तब बढ़ेगा जब उपभोक्ता वस्तु ४ को उपभोग की मात्रा को कम करें, क्योंकि Pn स्थिर है। अतः पुनः संतुलन प्राप्त करने के लिए ह्रासमान उपयोगिता के नियमानुसार उपभोक्ता को वस्तु ॐ की उपभोग की जाने वाली मात्रा को कम करना होगा।
प्र० 7. एक उपभोक्ता दो संयोजन (10, 6) तथा (10, 8) में तटस्थ है। क्या उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान है?
उत्तर: नहीं, उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान का अभिप्राय यह है कि किसी भी वस्तु का अधिक उपभोग उसे सदैव संतुष्टि की उच्च स्तर प्रदान करता है। यदि उपभोक्ता का एकदिष्ट अधिमान होता तो वह संयोजन (10, 6) तथा (10, 8) में तटस्थ नहीं हो सकता।
प्र० 8. बजट रेखा को कीमत रेखा क्यों कहते हैं?
उत्तर: बजट रेखा का समीकरण होता है।
अतः बजट रेखा का निर्धारण दोनों वस्तुओं की कीमत द्वारा होता है इसीलिए बजट रेखा को कीमत रेखा कहा जाता है।
प्र० 9. उपभोक्ता की प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए जब कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन दर से अधिक हो।
उत्तर: जब कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन दर से अधिक है, तो इसका अर्थ है कि उपभोक्ता के लिए एक रुपया वस्तु x पर खर्च करने की सीमान्त उपयोगिता एक रुपया वस्तु y पर खर्च करने की सीमान्त उपयोगिता से कम है। अतः उसे वस्तु » की मात्रा को बढ़ाना चाहिए तथा वस्तु की मात्रा को तब तक कम करना चाहिए जब तक कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन दर के बराबर न हो जाये।
MUn बढ़ना चाहिए तथा MUy कम होना चाहिए। हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम के अनुसार यह तब होगा जब उपभोक्ता वस्तु x की मात्रा कम करे तथा वस्तु की मात्रा बढ़ाये।
प्र० 10, उपभोक्ता की प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए जब कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन की दर से कम हो।
उत्तर: जब कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन की दर से कम है, तो इसका अर्थ है कि उपभोक्ता के लिए एक रुपया वस्तु ॐ पर खर्च करने की सीमान्त उपयोगिता एक रुपया वस्तु y पर खर्च करने की सीमान्त उपयोगिता से अधिक है। अतः उसे वस्तु x की मात्रा को बढ़ाना चाहिए तथा वस्तु y की मात्रा को तब तक कम करना चाहिए, जब तक कीमत अनुपात सीमान्त प्रतिस्थापन्न की दर के समान न हो जाये।
MUn कम होना चाहिए तथा MUy बढ़ना चाहिए। यह तब होगा जब हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम के अनुसार उपभोक्ता वस्तु की मात्रा कम करे और वस्तु y की मात्रा बढाये।
प्र० 11. संबंधित वस्तुएँ तथा असंबंधित वस्तुओं में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर: यदि दो वस्तुओं में एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण दूसरी वस्तु की माँग की गई मात्रा में परिवर्तन हो तो वे दो वस्तुएँ संबंधित वस्तुएँ हैं। ये दो प्रकार की हो सकती हैं-पूरक वस्तुएँ तथा प्रतिस्थापन वस्तुएँ यदि Pn बढ़ने से Qy बढ़े तथा Pn कम होने से Qy कम हो तो x और y प्रतिस्थापन वस्तुएँ हैं जैसे चाय और कॉफी (यहाँ Pn = x की कीमत, Qy = y की माँग) असंबंधित वस्तुएँ वे वस्तुएं हैं जिनमें एक वस्तु की कीमत में परिवर्तन के कारण दूसरी वस्तु की माँग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उदाहरण के लिए चीनी और चश्मा, फल और जूते आदि।
प्र० 12. एक उपभोक्ता किसी वस्तु की माँग कब करता है?
उत्तर: एक उपभोक्ता किसी वस्तु की माँग तब करता है, जब वस्तु के उपयोग से उसे उपयोगिता प्राप्त करने की आशा हो। जिस वस्तु में उपभोक्ता की किसी आवश्यकता को संतुष्ट करने की क्षमता होती है, तो वह उसके लिए | उपयोगिता रखती है और उसकी उपयोगिता अनुसार वह उसकी माँग करता है।
प्र० 13. माँग की कीमत लोच प्रतिशत में मापी जाती है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर: माँग की लोच सदैव कीमत में प्रतिशत परिवर्तन तथा माँग की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन को मापती है। वस्तुओं की कीमत रुपये में तथा मात्रा अलग इकाई (जैसे दूध की मात्रा लीटर) में होती है। ऐसे में प्रतिशत परिवर्तन लेकर निरपेक्ष परिवर्तन लिया जायेगा तो हमें वस्तु की इकाई को बार-बार लिखना पड़ेगा तथा दो इकाइयाँ होगी। रुपया तथा मात्रा की इकाई। इसके अतिरिक्त दो वस्तुओं की लोचशीलता की भी तुलना नहीं हो सकेगी, क्योंकि दो वस्तुओं की मात्रा की ईकाइयाँ भिन्न होंगी।
प्र० 14. माँग की कीमत लोच एक शुद्ध संख्या है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर: माँग की कीमत लोच एक शुद्ध संख्या है, क्योंकि यह चिह्न को अनदेखा करती है। जब भी दो चरों में ऋणात्मक सहसंबंध होता है तो उसकी लोच ऋणात्मक होगी, परन्तु हम (-) के चिह्न को अनदेखा करते हैं क्योंकि (-) चिह्न लोच को समझने में कठिनता उत्पन्न करता है। यदि वस्तु 3 की माँग की कीमत लोच (-) 2 तथा वस्तु 3 की माँग की कीमत लोच (-3) है तो ज्यामितीय नियमों के अनुसार (-) 3 < (-) 2 परन्तु लोच के अनुसार वस्तु y की कीमत लोच अधिक है, क्योंकि हमारी रूचि दिशा में नहीं अपितु डिग्री में है इसीलिए हम चिह्न को
अनदेखा करते हैं अर्थात् परिकलन के लिए Epp को नहीं बल्कि | Epp | को महत्व देते हैं।
प्र० 15. ह्रासमान सीमान्त उपयोगिता नियम से माँग का नियम प्राप्त कीजिए।
अथवा
एक वस्तु संतुलन शर्त ‘सीमान्त उपयोगिता = कीमत’ से माँग का नियम प्राप्त कीजिए। (Delhi 2011)
अथवा
एक वस्तु संतुलन शर्त ‘सीमान्त उपयोगिता = कीमत’ से वस्तु की कीमत और उसकी माँग के बीच विपरीत संबंध प्राप्त कीजिए।
उत्तर: एक वस्तु के उपभोग की स्थिति में एक उपभोक्ता संतुलन में होता है जब MVx = Px
यदि Px कम हो जाए MUx ≠ Px अब MUx = Px करने के लिए MUx भी कम होना चाहिए। MUx तब कम होगा जब हासमान उपयोगिता नियम के अनुसार उपभोक्ता वस्तु ॐ के उपभोग को बढ़ायेगा। इसी प्रकार यदि Px बढ़ जाए MUx ≠ Px पुनः MUx = Px करने के लिए MUx भी बढ़ना चाहिए। MUx तब बढ़ेगा जब हासमान उपयोगिता नियम के अनुसार उपभोक्ता वस्तु x कर उपभोग कम करेगा। अत: Px बढ़ने पर उपभोक्ता वस्तु x का उपभोग अर्थात २, कम करेगा। तथा Px कम होने पर उपभोक्ता २, को बढ़ायेगा। इसे नीचे दिये गए चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है। यदि कीमत OP के बराबर है तो उपभोक्ता OD मात्रा पर संतुलन में हैं। OP हो जाये तो उपभोक्ता 0२, मात्रा पर संतुलन में होगा और यदि कीमत बढ़कर OP, हो जाये तो उपभोक्ता OQ0 मात्र पर सतुलन में होगा।
प्र० 16. वक्र के ढलान तथा माँग की कीमत लोच में संबंध माँग स्थापित करो।
उत्तर:
प्र० 17. नमक की माँग बेलोचदार क्यों होती है?
उत्तर: नमक की माँग बेलोचदार होती है क्योंकि
(a) यह एक अनिवार्य वस्तु है
(b) इसके विकल्प उपलब्ध नहीं हैं।
(c) इसका कुल व्यय में हिस्सा बहुत कम है।
प्र० 18. एक वस्तु का माँग वक्र बनाइए जब इसकी माँग की कीमत लोच
(क) शून्य
(ख) अनंत
(ग) इकाई हो।
उत्तरः
प्र. 19. निम्नलिखित वस्तुओं की कीमत लोच कैसी होगी और क्यों?
(i) पानी
(ii) पेट्रोल
(iii) दूध
(iv) माचिस
उत्तर:
(i) पानी की माँग बेलोचदार होगी, क्योंकि यह एक अनिवार्य वस्तु है तथा इसका कोई विकल्प नहीं है।
(ii) पेट्रोल की माँग लोचदार होगी, क्योंकि इसका कुल व्यय में बड़ा हिस्सा है तथा दीर्घावधि में इसे डीजल सीएनजी (CNG) से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
(iii) दूध की माँग लोचदार होगी, क्योंकि इसके कई उपयोग हैं तथा इसका कुल व्यय में बड़ा हिस्सा है।
(iv) माचिस की माँग बेलोचदार होगी, क्योंकि इसका कीमत स्तर बहुत कम है, इसका कुल व्यय में छोटा सा हिस्सा है तथा इसकी प्रतिस्थापन वस्तुएँ उपलब्ध नहीं हैं।
VI. मूल्य-आधारित प्रश्न (Value Based Questions)
प्र० 1. जल जीवन की मूलभूत आवश्यकता है फिर भी जल की कीमत हीरे की कीमत से इतनी कम है। क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर: जल की कुल उपयोगिता बहुत अधिक है, परन्तु जल की सीमान्त उपयोगिता शून्य के निकट है जबकि हीरे की उपयोगिता बहुत अधिक होती है, उपभोक्ता एक वस्तु की कीमत को सीमान्त उपयोगिता के साथ जोड़ता है न कि कुल उपयोगिता के साथ। उपभोक्ता किसी भी वस्तु की एक इकाई खरीदते समय, उस इकाई से संबंधित अतिरिक्त लाभ तथा अतिरिक्त लागत की तुलना करेगा। अतिरिक्त लाभ अर्थात् सीमान्त उपयोगिता, अतिरिक्त लागत अर्थात् दी जाने वाली कीमत, अतः वह अपना संतुलन प्राप्त करता है जब
इसीलिए जल जीवन की आधारभूत आवश्यकता है फिर भी जल की कीमत हीरे की कीमत से इतनी कम है।
प्र० 2. अध्यात्म के क्षेत्र पर ‘हासमान सीमान्त उपयोगिता नियम’ (Law of Diminishing Marginal Utility) किस प्रकार लागू होता है?
उत्तर: अध्यात्म के क्षेत्र पर यह नियम लागू नहीं होता, क्योंकि आध्यात्म के क्षेत्र में हमें जितना उपभोग अर्थात् योग का समय अथवा सेवा का समय बढ़ाते हैं सीमान्त उपयोगिता प्रत्येक इकाई के साथ बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति
में उपभोक्ता संतुलन ज्ञात करना संभव नहीं है।
प्र० 3. क्या मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता शून्य या ऋणात्मक हो सकती है? व्याख्या करें।
उत्तर: नहीं, मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता शून्य या ऋणात्मक नहीं हो सकती, क्योंकि मुद्रा में सामान्य क्रय शक्ति है, मानव की इच्छाएँ असीमीत हैं तथा मुद्रा में सामान्य क्रय शक्ति होने के कारण मुद्रा सभी भौतिक इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम हैं मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता शून्य होने का अर्थ है कि व्यक्ति के लिए मुद्रा को होना या न होना कोई भेद उत्पन्न नहीं करता, जबकि मुद्रा की सीमान्त उपयोगिता ऋणात्मक होने का अर्थ है कि
व्यक्ति मुद्रा से परेशान है, क्योंकि मुद्रा की उपस्थिति उसे अच्छाई के स्थान पर बुराई दे रही है।
प्र० 4. किसी वस्तु पर सरकार ने आर्थिक सहायता प्रदान कर दी। जो उपभोक्ता इस वस्तु का उपभोग कर रहे हैं उनके उपभोक्ता संतुलन पर इसका क्या प्रभाव पडेगा?
उत्तर: आर्थिक सहायता का अर्थ है-कि उपभोक्ता उस वस्तु की मात्रा पहले से का अधिक खरीद सकता है, अतः वह पहले से उच्च अनाधिमान वक्र पर खिसक जायेगा। आर्थिक सहायता से पूर्व उपभोक्ता बिन्दु E पर संतुलन में था जहाँ वह वस्तु x की OX मात्रा खरीद रहा था। आर्थिक सहायता मिलने से वस्तु x की कीमत कम हो गई तथा बजट रेखा BL, पर खिसक गई। अब उपभोक्ता वस्तु बिन्दु E, पर संतुलन में है जहाँ वह वस्तु x की Ox, मात्र खरीद रहा है।
प्र० 5. गरीबों की सहायता के लिए सरकार रोकड़ सहायता प्रदान करती है। इसका उपभोक्ता संतुलन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: रोकड़ सहायता प्राप्त होने के बाद उपभोक्ताओं की आय में वृद्धि हो जायेगी। इससे बजट रेखा बाँई ओर खिसक जायेगी। बजट रेखा के दाँई ओर खिसकने से उपभोक्ता दोनों वस्तुओं की मात्रा पहले से अधिक खरीद पायेगा। इसे नीचे > दिये चित्र द्वारा दिखाया गया है। रोकड़ सहायता से पूर्व उपभोक्ता बिन्दु E ॐ … पर संतुलन में था, जहाँ वह वस्तु x की 0, तथा वस्तु » की OQ, मात्रा खरीद रहा था। परन्तु रोकड़ सहायता मिलने से बजट रेखा B, से B1L1 पर खिसक गई। अतः अब उपभोक्ता बिंदु E पर संतुलन में है जब वह वस्तु वस्तु x की OQx1 तथा वस्तु y की OQy1 मात्रा खरीद रहा है।
प्र० 6. बहुत सी अवांछनीय वस्तुओं जैसे सिगरेट, शराब आदि पर कर लगाकर उनकी कीमत बढ़ाई जाती है फिर भी उनकी माँग उतनी ही रहती है। क्यों?
उत्तर: वस्तु की कीमत में परिवर्तन होने पर वस्तु की माँग की जाने पर मात्रा में कितना परिवर्तन आयेगा, यह उस वस्तु की कीमत लोच पर निर्भर करता है। सिगरेट, शराब जैसी वस्तुओं की माँग आय बेलोचदार होती है, इसलिए | कर लगाकर उनकी कीमत बढ़ाई जाने पर भी उनकी माँग कम नहीं होती। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि उपभोक्ता इन वस्तुओं के उपभोग का इतना आदी हो जाता है कि वह इनका उपभोग किये बिना नहीं रह पाता
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